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राजप्रश्नीयसूत्र
माता-पिता द्वारा कृत जन्मादि संस्कार
२८०– तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिउणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ ।
तए णं तस्स दारयस्स नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं वितिक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुनसुजायसव्वंगसुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं दारयं पयाहिसि ।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिवडियं करेहिंति, ततियदिवसे चंदसूरदंसणिगं करिस्संति, छटे दिवसे जागरियं जागरिस्संति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते संपत्ते बारसाहे दिवसे णिव्वित्ते असुइजायकम्मकरणे चोक्खे संमज्जिओवलित्ते विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावेस्संति, मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणं आमंतेत्ता तओ पच्छा बहाया कयबलिकम्मा जाव अलंकिया भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया ते मित्तणाइ-जाव परिजणेण सद्धिं विउलं असणं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभुंजेमाणा परिभाएमाणा एवं चेव णं विहरिस्संति, जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्तणाइजाव परिजणं विउलेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेस्संति सम्माणिस्संति तस्सेव मित्त-जावपरिजणस्स पुरतो एवं वइस्संति
जम्हा णं देवाणुप्पिया ! इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि धम्मे दढा पइण्णा जाया, तं होउ णं अहं एयस्स दारयस्स दढपइण्णे णामेणं । तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेन्जं करिस्संति-दढपइण्णो य दढपइण्णो य ।
तए णं तस्स अम्मापियरो आणुपुव्वेणं ठितिवडियं च चंदसूरियदरिसणं च धम्मजागरियं च नामधिज्जकरणं च पजेमणगं च पडिवद्धावणगं च पचंकमणगं च कन्नवेहणं च संवच्छरपडिलेहणगं च चूलोवणयं च अन्नाणि य बहूणि गब्भाहाणजम्मणाइयाइं महया इड्डीसक्कारसमुदएणं करिस्संति ।
२८०- तत्पश्चात् उस दारक के गर्भ में आने पर माता-पिता की धर्म में दृढ़ प्रतिज्ञा श्रद्धा होगी।
उसके बाद नौ मास और साढ़े सात रात्रि-दिन बीतने पर दारक की माता सुकुमार हाथ-पैर वाले शुभ लक्षणों एवं परिपूर्ण पांच इन्द्रियों और शरीर वाले, सामुद्रिक शास्त्र में बताये गये शारीरिक लक्षणों, तिल आदि व्यंजनों और गुणों से युक्त, माप, तोल और नाप में बराबर, सुजात, सर्वांगसुन्दर, चन्द्रमा के समान सौम्य आकार वाले, कमनीय, प्रियदर्शन एवं सरूपवान् पुत्र को जन्म देगी।
तब उस दारक के माता-पिता प्रथम दिवस स्थितिपतिता (कुलपरंपरागत क्रियाओं से पुत्रजन्मोत्सव) करेंगे। तीसरे दिन चन्द्रदर्शन और सूर्यदर्शन सम्बन्धी क्रियायें करेंगे। छठे दिन रात्रिजागरण करेंगे। ग्यारह दिन बीतने के बाद बारहवें दिन जातकर्म सम्बन्धी अशुचि की निवृत्ति के लिए घर झाड़बुहार और लीप-पोत कर शुद्ध करेंगे। घर की शुद्धि करने के बाद अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप विपुल भोजनसामग्री बनवायेंगे और मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजजनों,