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सूर्याभदेव का भावी जन्म
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इस प्रकार के निश्चय के साथ पुनः आलोचना और प्रतिक्रमण करके समाधिपूर्वक मरण समय के प्राप्त होने पर काल करके सौधर्मकल्प के सूर्याभविमान की उपपात सभा में सूर्याभदेव के रूप में उत्पन्न हुआ, इत्यादि पूर्व में किया गया समस्त वर्णन यहां कर लेना चाहिए। सूर्याभदेव का भावी जन्म
२७९- तए णं से सूरियाभे देवे अहुणोववन्नए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति, तं०–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाणपज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए, तं एवं खलु भो ! सूरियाभेणं देवेणं दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए ।
सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता । गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता ।
से णं सूरियाभे देवे ताओ लोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति कहिं उववजिहिति ? __ • गोयमा ! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति, तं०—अड्डाइं दित्ताई विउलाइं विच्छिणविपुलभवण-सयणासण-जाण-वाहणाई बहुधण-बहुजातरूव-रययाइं आओगपओगसंपउत्ताइं विच्छिड्डियपउरभत्तपाणाइं बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूयाइं बहुजणस्स अपरिभूताई, तत्थ अन्नयरेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पच्चाइस्सइ ।
२७९-- तत्काल उत्पन्न हुआ वह सूर्याभदेव पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ। वे पर्याप्तियां इस प्रकार हैं१. आहारपर्याप्ति, २. शरीरपर्याप्ति, ३. इन्द्रियपर्याप्ति, ४. श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति, ५. भाषा-मन:पयाप्ति। ___इस प्रकार से हे गौतम! उस सूर्याभदेव ने यह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवानुभाव—देवप्रभाव उपार्जित किया है, प्राप्त किया है और अधिगत—अधीन किया है।
गौतम–भदन्त! उस सूर्याभदेव की आयुष्यमर्यादा कितने काल की है ? भगवान् गौतम! उसकी आयुष्यमर्यादा चार पल्योपम की है।
गौतम भगवन्! आयुष्य पूर्ण होने, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर सूर्याभदेव उस देवलोक से च्यवन करके कहां जायेगा? कहां उत्पन्न होगा?
भगवन्—गौतम! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल आढ्य-धन-धान्यसमृद्ध, दीप्त-प्रभावक, विपुल-बड़े कुटुम्ब परिवारवाले, बहुत से भवनों, शय्याओं, आसनों और यानवाहनों के स्वामी, बहुत से धन, सोने-चांदी के अधिपति, अर्थोपार्जन के व्यापार-व्यवसाय में प्रवृत्त एवं दीनजनों को जिनके यहां से प्रचुर मात्रा में भोजनपान प्राप्त होता है, सेवा करने के लिए बहुत से दास-दासी रहते हैं, बहुसंख्यक गाय, भैंस, भेड़ आदि पशुधन है और जिनका बहुत से लोगों द्वारा भी पराभव-तिरस्कार नहीं किया जा सकता, ऐसे प्रसिद्ध कुलों में से किसी एक कुल में वह पुत्र रूप से उत्पन्न होगा।