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राजप्रश्नीयसूत्र
के लिए रखूंगा, एक भाग अंतःपुर के निर्वाह और रक्षा के लिए दूंगा और शेष एक भाग से एक विशाल कूटाकारशाला बनवाऊंगा और फिर बहुत से पुरुषों को भोजन, वेतन और दैनिक मजदूरी पर नियुक्त कर प्रतिदिन विपुल मात्रा में अशन, पान, खादिम स्वादिम रूप चारों प्रकार का आहार बनवाकर अनेक श्रमणों, माहनों, भिक्षुओं यात्रियों और पथिकों को देते हुए एवं शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पोषधोपवास आदि यावत् (तप द्वारा आत्मा को भावित करते हुए) अपना जीवनयापन करूंगा, ऐसा कहकर जिस दिशा से आया था, वापस उसी ओर लौट गया । प्रदेशी द्वारा कृत राज्यव्यवस्था
२७४ – तए णं से पएसी राया कल्लं जाव तेयसा जलंते सेयवियापामोक्खाई सत्त गामसहस्साईं चत्तारि भाए करेइ, एगं भागं बलवाहणस्स दलइ जाव कूडागारसालं करेइ, तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहिं जाव उवक्खडावेत्ता बहूणं समण जाव परिभाएमाणे विहरइ ।
२७४— तत्पश्चात् प्रदेशी राजा ने अगले दिन यावत् जाज्वल्यमान तेजसहित सूर्य के प्रकाशित होने पर सेयविया प्रभृति सात हजार ग्रामों के चार भाग किये। उनमें से एक भाग बल-वाहनों को दिया यावत् कूटाकारशाला का निर्माण कराया। उसमें बहुत से पुरुषों को नियुक्त कर यावत् भोजन बनवाकर बहुत से श्रमणों यावत् पथिकों को देते हुए अपना समय बिताने लगा ।
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२७५— तए णं से पएसी राया समणोवासए जाव अभिगयजीवाजीवे० विहरइ । जप्पभिड़ं च णं पएसी राया समणोवासए जाव तप्पभिड़ं च णं रज्जं च, रटुं च, बलं वाहणं च, कोट्ठागारं च पुरं च, अंतेउरं च जणवयं च, अणाढायमाणे यावि विहरति । २७५ - प्रदेशी राजा अब श्रमणोपासक हो गया और जीव- अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञात होता हुआ धार्मिक आचार-विचारपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।
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जबसे वह प्रदेशी राजा श्रमणोपासक हुआ तब से राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोठार, पुर, अन्तःपुर और जनपद के प्रति भी उदासीन रहने लगा।
सूर्यकान्ता रानी का षड्यंत्र
२७६ — तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - जप्पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाव तप्पभिदं च णं रज्जं च रट्ठे जाव अंतेउरं च ममं जणवयं च अणाढायमाणे विहरइ; तं सेयं खलु मे पएसिं रायं केणवि सत्थप्पओगेण वा अग्गप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पआगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमारं रज्जे ठवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणीए पालेमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी—
जप्पभि च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिदं च णं रज्जं च जाव अंतेउरं च णं जणवयं च माणुस्सए य कामभोगे अणाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु तव पुत्ता ? पएसिं रायं केइ सत्थप्पयोगेण वा जाव उद्दवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए ।