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राजप्रश्नीयसूत्र
हैं। यथा (उनके नाम इस प्रकार हैं—) १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. अशरीरी (शरीर रहित) जीव, ५. परमाणु पुद्गल, ६. शब्द, ७. गंध, ८. वायु, ९. यह जिन (कर्म-क्षय करने वाला) होगा अथवा जिन नहीं होगा और १०. यह समस्त दु:खों का अन्त करेगा या नहीं करेगा। किन्तु उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक (केवलज्ञानी, केवलदर्शी, सर्वज्ञ सर्वदर्शी) अर्हन्त, जिन, केवली इन दस बातों को उनकी समस्त पर्यायों सहित जानते-देखते हैं, यथा—धर्मास्तिकाय यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा या नहीं करेगा। इसलिए प्रदेशी! तुम यह श्रद्धा करो कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है, जीव शरीर एक नहीं हैं।
विवेचनप्रस्तुत सूत्र में वायुकायिक जीवों के उल्लेख द्वारा संसारी जीवों का स्वरूप बताया है कि सभी संसारी जीव सूक्ष्म और बादर इन दो प्रकारों में से किसी-न-किसी एक प्रकार वाले हैं। इन प्रकारों के होने के कारण सूक्ष्म नाम और बादर नाम कर्म हैं। सूक्ष्म नामकर्म के उदय से प्राप्त शरीर इन्द्रियग्राह्य नहीं हो पाता है और बादर नामकर्म के उदय से शरीर में ऐसा बादर परिणाम उत्पन्न होता है कि जिससे वे इन्द्रियग्राह्य हो सकते हैं। सूक्ष्म और बादर नामकर्म का उदय तिर्यंचगति के जीवों में होता है और इनके एक पहली स्पर्शनेन्द्रिय होती है। सभी संसारी जीव नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव, इन चार गतियों में से किसी-न-किसी गति वाले हैं और स्वाभाविक चैतन्य गुण के साथ गतियों के अनुरूप प्राप्त इन्द्रियों, शरीर, वेद एवं रागद्वेष, मोह आदि वैभाविक भावों तथा लेश्या परिणाम वाले होते हैं।
वायुकाय के जीवों की गति तिर्यंच है और उनके एक स्पर्शनेन्द्रिय, कृष्ण, नील, कापोत लेश्या, नपुंसक वेद और औदारिक, वैक्रिय तैजस, कार्मण शरीर होते हैं।
२६५– तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी से नूणं भंते ! हत्थिस्स कुंथुस्स य समे चेव जीवे ? हंता पएसी ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे ?
से णूणं भंते ! हत्थीउ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव एवं आहार-नीहार-उस्सास-नीसास-इड्डीए महज्जुइअप्पतराए चेव, एवं च कुंथुओ हत्थी महाकम्मतराए चेव महाकिरिय० जाव ?
हंता पएसी ! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्म्तराए चेव कुंथुओ वा हत्थी महाकम्मतराए चेव तं चेव ।
कम्हा णं भंते ! हथिस्स स कुंथुस्स य समे चेव जीवे ?
पएसी ! जहा णामए कूडागारसाला सिया जाव गंभीरा, अह णं केइ पुरिसे जोइं व दीवं व गहाय तं कूडागारसालं अंतो अंतो अणुपविसइ तीसे कूडागारसालाए सव्वतो समंता घणनिचियनिरंतराणि णिच्छिड्डाइं दुवारवयणाइं पिहेति, तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए तं पईवं पलीवेज्जा, तए णं से पईवे तं कूडागारसालं अंतो अंतो ओभासइ उज्जोवेइ तवति पभासेइ, णो चेव णं बाहिं ।
अह णं से पुरिसे तं पईवं इड्डरएणं पिहेज्जा, तए णं से पईवे तं इड्डरयं अंतो ओभासेइ, णो चेव णं इड्डरगस्स बाहिं, णो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं, एवं गोकिंलिंजेणं, पच्छि