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तज्जीव-तच्छरीवाद मंडन-खंडन
१८१ उवणेति । तए णं अहं तं पुरिसं सव्वतो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि, तए णं अहं तं पुरिसं दुहा फालियं करेमि, करित्ता सव्वतो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि, एवं तिहा चउहा संखेज्जफालियं करेमि, णो चेव णं तत्थ जीवं पासामि । जइ णं भंते ! अहं तं पुरिसं दुहा वा, तिहा वा, चउहा वा, संखेज्जहा वा फालियंमि वा जीवं पासंतो तो णं अहं सद्दहेज्जा नो तं चेव, जम्हा णं भंते ! अहं तंसि दुहा वा तिहा वा चउहा वा संखिज्जहा वा फालियंमि वा जीवं न पासामि तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहातं जीवो तं सरीरं तं चेव ।
२५८- केशी कुमारश्रमण की उक्त बात को सुनने के पश्चात् प्रदेशी राजा ने पुनः केशी कुमारश्रमण से इस प्रकार कहा—हे भदन्त ! आपकी यह उपमा बुद्धिप्रेरित होने से वास्तविक नहीं है। इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि जीव और शरीर पृथक्-पृथक् हैं। क्योंकि भदन्त ! बात यह है कि किसी समय मैं अपने गणनायकों आदि के साथ बाह्य उपस्थानशाला में बैठा था। यावत् नगररक्षक एक चोर पकड़ कर लाये। तब मैंने उस पुरुष को सभी ओर से (सिर से पैर तक) अच्छी तरह देखा-भाला, परन्तु उसमें मुझे कहीं भी जीव दिखाई नहीं दिया। इसके बाद मैंने उस पुरुष के दो टुकड़े कर दिये। टुकड़े करके फिर मैंने अच्छी तरह सभी ओर से देखा। तब भी मुझे जीव नहीं दिखा। इसके बाद मैंने उसके तीन, चार यावत् संख्यात टुकड़े किये, परन्तु उनमें भी मुझे कहीं पर जीव दिखाई नहीं दिया। यदि भदन्त! मुझे उस पुरुष के दो, तीन, चार अथवा संख्यात टुकड़े करने पर भी कहीं जीव दिखता तो मैं यह श्रद्धाविश्वास कर लेता कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है, जीव और शरीर एक नहीं है। लेकिन हे भदन्त ! जब मैंने उस पुरुष के दो, तीन, चार अथवा संख्यात टुकड़ों में भी जीव नहीं देखा है तो मेरी यह धारणा कि जीव शरीर है और शरीर जीव है, जीव-शरीर भिन्न-भिन्न नहीं हैं, सुसंगत–सुस्थिर है।
२५९- तए णं केसिकुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासीमूढतराए णं तुमं पएसी ! ताओ तुच्छतराओ । के णं भंते ! तुच्छतराए ?
पएसी ! से जहाणामए केइ पुरिसे वणत्थी वणोवजीवी वणगवेसणयाए जोइं च जोइभायणं च गहाय कट्ठाणं अडविं अणुपविठ्ठा, तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए जाव किंचिदेसं अणुप्पत्ता समाणा एगं पुरिसं एवं वयासी- अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कट्ठाणं अडविं पविसामो, एत्तो णं तुम जोइभायणाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि । अह तं जोइभायणे जोई विझवेज्जा एत्तो णं तुम कट्ठाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि, त्ति कटु कट्ठाणं अडविं अणुपविट्ठा ।
___ तए णं से पुरिसे तओ मुहुत्तन्तरस्स तेसिं पुरिसाणं असणं साहेमि तिं कटु जेणेव जोतिभायणे तेणेव उवागच्छइ । जोइभायणे जोइं विज्झायमेव पासति । तए णं से पुरिसे जेणेव से कट्टे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं कट्ठे सव्वओ समंता समभिलोएति, नो चेव णं तत्थ जोइं पासति । तए णं से पुरिसे परियरं बंधइ, फरसुं गिण्हइ, तं कटुं दुहा फालियं करेइ, सव्वतो समंता समभिलोएइ, णो चेव णं तत्थ जोइं पासइ । एवं जाव संखेज्जफालियं