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________________ वाद्य : विश्लेषण उसके पश्चात् सूर्याभ देव ने निम्न प्रकार के वाद्यों की विक्रियाशक्ति से रचना की— शंख, श्रृंग, श्रृंगिका, खरमुही (काहाला), पेया (महतीकाला), पिरिपिरिका (कोलिक मुखावनद्ध मुखवाद्य), पणव (लघुपटह), पटह, भंभा (ढक्का), होरंभा (महाढक्का), भेरी (ढक्काकृति वाद्य), झल्लरी" (चर्मावनद्धा विस्तीर्णवलयाकारा), दुन्दुभि (भेर्याकारा संकटमुखी देवातोद्य ४२), मुरज ( महाप्रमाण मदंल), मृदंग (लघु मर्दल), नंदीमृदंग (एकतः संकीर्णः अन्यत्र विस्तृतो मुरजविशेष :), आलिंग (मुरज वाद्यविशेष४२), कुस्तुंब (चर्मावनद्धपुटो वाद्यविशेष: ), गोमुखी, मर्दल (उभयतः सम४), वीणा, विपंची (त्रितंत्री वीणा), वल्लकी (सामान्यतो वीणा, महती, कच्छभी, भारती वीणा), चित्रवीणा, बद्धीस, सुघोषा, नंदिघोषा, भ्रामरी, षड्भ्रामरी, वरवादनी (सप्ततंत्री वीणा ), तूणा, तुम्बवीणा (बयुक्त वीणा), आमोट, झंझा, नकुल, मुकुन्द (मुरज वाद्यविशेष), हुडुक्का५, विचिक्की, करटा४६, डिंडिम, किणित, कडंब, दर्दर, दर्दरिका (यस्य चतुर्भिश्चरणैखस्थानं भुवि स गोधाचर्मावनद्धो, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, १०१), कलशिका, महुया, तल, ताल, कांस्यताल, रिंगिसिका (रिंगिसिगिका, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति), लत्तिया, मगरिका, शिशुमारिका, वंश, वेणु, वाली (तूणविशेषः, स हि मुखे दत्वा वाद्यते), पिरीलि और बद्धक (पिरिलीबद्धकौ तूणरूप वाद्यविशेषौ, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, पृष्ठ- १०१) ४७, (५९) । वाद्यों की संख्या के सम्बन्ध में पाठभेद है। मूलपाठ में वाद्यों की संख्या ४९ है और पाठानुसार इनकी संख्या ५९ है । इस पर चिन्तन करते हुए टीकाकार ने इस भिन्नता का समन्वय किया है। उन्होंने कुछ वाद्यों को एक दूसरे में मिलाकर उनकी संख्या का स्पष्टीकरण किया है । यों आगमसाहित्य में अनेक स्थलों पर वाद्यों का उल्लेख है । आचारांग४९ में ‘किरिकिरिया' वाद्य का वर्णन है, जो बांस आदि की लकड़ी से बना हुआ होता था । सूत्रकृतांग में 'कुक्कयय' और 'वेणुपलाशिय' बांसुरियों का वर्णन है, जो दांतों में बांये हाथ से पकड़ कर वीणा की भांति दाहिने हाथ से बजाई जाती थी ।° भगवतीसूत्र की टीका में, ५१ जीवाभिगम, ५२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ५३ निशीथसूत्र ४ आदि में भी ४१. यह बायें हाथ में पकड़कर दायें हाथ से बजाई जाती है ४२. मंगल और विजय सूचक होती है तथा देवालयों में बजाई जाती है ४३. गोपुच्छाकृति मृदंग जो एक सिरे पर चौड़ा और दूसरे पर सकड़ा होता है ४४. संगीतरत्नाकर, १०३४ आदि ४५. इसे आवज अथवा स्कंधावज भी कहा जाता है ४६. संगीतरत्नाकर १०७६ आदि ४७. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र ६४ ४८. मूलभेदापेक्षया आतोद्यभेदा एकोनपञ्चाशत्, शेषास्तु एतेषु एव अन्तर्भवन्ति, यथा वंशातोद्यविधाने वालीवेणुपिरिलिबद्धगाः - राजप्रश्नीय सटीक, पृष्ठ १२८ इति ४९. आचारांग — २, ११, ३९१, पृष्ठ ३७९ ५०. सूत्रकृतांग — ४. २. ७. ५१. भगवतीसूत्र टीका—५. ४. पृष्ठ - २१६ अ ५२. जीवाभिगम ३, पृष्ठ- १४५ - अ ५३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति — २, पृष्ठ- १०० - अ आदि ५४. निशीथसूत्र—– १७. १३५-१३८ —शांर्गधर, संगीतरत्नाकर—६, १२३७ —शांर्गधर, संगीतरत्नाकर —६, ११४६ — वासुदेवशरण अग्रवाल हर्षचरित, पृष्ठ ६७ —संगीतरत्नाकर १०७५ [२१]
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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