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राजप्रश्नीयसूत्र कामभोगों को भोगते हुए देख लो तो, हे प्रदेशी ! उस पुरुष के लिए तुम क्या दंड निश्चित करोगे ?
प्रदेशी हे भगवन् ! मैं उस पुरुष के हाथ काट दूंगा, उसे शूली पर चढ़ा दूंगा, कांटों से छेद दूंगा, पैर काट दूंगा अथवा एक ही वार से जीवनरहित कर दूंगा—मार डालूंगा।
प्रदेशी राजा के इस कथन को सुनकर केशी कुमारश्रमण ने उससे कहा हे प्रदेशी! यदि वह पुरुष तुमसे यह कहे कि–'हे स्वामिन् ! आप घड़ी भर रुक जाओ, तब तक आप मेरे हाथ न काटें, यावत् मुझे जीवन रहित न करें जब तक मैं अपने मित्र, ज्ञातिजन, निजक—पुत्र आदि स्वजन-सम्बन्धी और परिचितों से यह कह आऊं कि हे देवानुप्रियो ! मैं इस प्रकार के पापकर्मों का आचरण करने के कारण यह दंड भोग रहा हूं, अतएव हे देवानुप्रियो! तुम कोई ऐसे पाप कर्मों में प्रवृत्ति मत करना, जिससे तुमको इस प्रकार का दंड भोगना पड़े, जैसा कि मैं भोग रहा हूं।' तो हे प्रदेशी! क्या तुम क्षणमात्र के लिए उस पुरुष की यह बात मानोगे?
प्रदेशी हे भदन्त! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् उसकी यह बात नहीं मानूंगा। केशी कुमारश्रमण —उसकी बात क्यों नहीं मानोगे ? प्रदेशी—क्योंकि हे भदन्त! वह पुरुष अपराधी है।
तो इसी प्रकार हे प्रदेशी! तुम्हारे पितामह भी हैं, जिन्होंने इसी सेयविया नगरी में अधार्मिक होकर जीवन व्यतीत किया यावत् प्रजाजनों से कर लेकर भी उनका अच्छी तरह से पालन, रक्षण नहीं किया एवं मेरे कथनानुसार वे बहुत से पापकर्मों का उपार्जन करके नरक में उत्पन्न हुए हैं। उन्हीं पितामह के तुम इष्ट, कान्त यावत् दुर्लभ पौत्र हो। यद्यपि वे शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहते हैं किन्तु वहां से आने में समर्थ नहीं हैं। क्योंकि प्रदेशी! तत्काल नरक में नारक रूप से उत्पन्न जीव शीघ्र ही चार कारणों से मनुष्यलोक में आने की इच्छा तो करते हैं, किन्तु वहां से आ नहीं पाते हैं। वे चार कारण इस प्रकार हैं
१. नरक में अधुनोत्पन्न नारक वहां की अत्यन्त तीव्र वेदना का वेदन करने के कारण मनुष्यलोक में शीघ्र आने की आकांक्षा करते हैं, किन्तु आने में असमर्थ हैं।
२. नरक में तत्काल नैरयिक रूप से उत्पन्न जीव परमाधार्मिक नरकपालों द्वारा बारंबार ताड़ित-प्रताड़ित किये जाने से घबराकर शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा तो करते हैं, किन्तु वैसा करने में समर्थ नहीं हो पाते हैं।
३. अधुनोपपन्नक नारक मनुष्यलोक में आने की अभिलाषा तो रखते हैं किन्तु नरक सम्बन्धी असातावेदनीय कर्म के क्षय नहीं होने, अननुभूत एवं अनिर्जीर्ण होने से वे वहां से निकलने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। .
४. इसी प्रकार नरक सम्बन्धी आयुकर्म के क्षय नहीं होने से, अननुभूत एवं अनिर्जीर्ण होने से नारक जीव मनुष्यलोक में आने की अभिलाषा रखते हुए भी वहां से आ नहीं सकते हैं।
अतएव हे प्रदेशी ! तुम इस बात पर विश्वास करो, श्रद्धा रखो कि जीव अन्य-भिन्न है और शरीर अन्य है, किन्तु यह मत मानो कि जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है।
विवेचन— नरक में से जीव के न आ सकने के इन्हीं कारणों का दीघनिकाय (बौद्ध ग्रन्थ) में भी इसी प्रकार से उल्लेख किया है।
२४६– तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वदासीअत्थि णं भंते! एसा पण्णा उवमा, इमेण पुण कारणेण नो उवागच्छइ, एवं खलु भंते !