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________________ तज्जीव-तच्छरीवाद मंडन-खंडन १६७ जाव जीवियाओ ववरोवेहि जाव ताव अहं मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणं एवं वयामि एवं खलु देवाणुप्पिया ! पावाई कम्माइं समायरेत्ता इमेयारूवं आवई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे वि केइ पावाई कम्माइं समायरह, मा णं से वि एवं चेव आवई पाविजिहिह जहा णं अहं ।' तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमटुं पडिसुणेजासि ? णो तिणढे समढे । कम्हा णं ? जम्हा णं भंते ! अवराही णं से पुरिसे । एवामेव पएसी ! तव वि अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए णयरीए अधम्मिए जाव' णो सम्म करभरवित्तिं पवत्तेइ, से णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहुं जाव उववन्नो, तस्स णं अज्जगस्स तुमं णत्तुए होत्था इढे कंते जाव' पासणयाए । से णं इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए । चउहि ठाणेहिं पएसी अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए इच्छेइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाए___१. अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए से णं तत्थ महब्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वं (आगच्छित्तए) णो चेव णं संचाएइ । ____२. अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए निरयपालेहिं भुजो-भुज्जो समहिट्ठिजमाणे इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ । ३. अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए निरयवेयणिज्जंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अनिज्जिनसि इच्छइ माणुसं लोगं (हव्वमागच्छित्तए) नो चेव णं संचाएइ । ४. एवं णेरइए निरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिन्नंसि इच्छइ माणुसं लोगं० नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए । इच्चेएहिं चउहिं ठाणेहिं पएसी अहुणोववन्ने नरएसु नेरएसु इच्छइ माणुसं लोगं० णो चेव णं संचाइए । तं सहहाहि णं पएसी ! जहा—अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं । २४५– प्रदेशी राजा की युक्ति को सुनने के पश्चात् केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा से इस प्रकार कहाहे प्रदेशी! तुम्हारी सूर्यकान्ता नाम की रानी है ? प्रदेशी–हां भदन्त ! है। केशी कुमारश्रमण —तो है प्रदेशी! यदि तुम उस सूर्यकान्ता देवी को स्नान, बलिकर्म और कौतुक-मंगलप्रायश्चित्त करके एवं समस्त आभरण-अलंकारों से विभूषित होकर किसी स्नान किये हुए यावत् समस्त आभरणअलंकारों से विभूषित पुरुष के साथ इष्ट-मनोनुकूल शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंधमूलक पांच प्रकार के मानवीय १. देखें सूत्र संख्या २२६ देखें सूत्र संख्या २४४
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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