SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केशी कुमारभ्रमण को देखकर प्रदेशी का चिन्तन से किं तं उग्गहे ? दुवि पण्णत्ते, जहा नंदीए जाव से त्तं धारणा, से त्तं आभिणिबोहियणाणे । से किं तं सुयनाणे ? सुयनाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा— अंगपविट्ठे च, अंगबाहिरं च सव्वं भाणियव्वं जाव दिट्टिवाओ । ओहिणाणं भवपच्चइयं, खओवसमियं जहा नंदीए । मणपज्जवनाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—– उज्जुमई य, विउलमई य, तहेव केवलनाणं सव्वं भाणियव्वं । तत्थ णं जे से आभिणिबोहियनाणे से णं ममं अत्थि, तत्थ णं जे से सुयनाणे से विय ममं अत्थि, तत्थ णं जे से ओहिणाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से मणपज्जवनाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से केवलनाणे से णं ममं नत्थि, से णं अरिहंताणं भगवंताणं । इच्चेएणं पएसी अहं तव चउव्विहेणं छउमत्थेणं णाणेणं इमेयारूवं अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं जाणामि पासामि । १५९ २४१ - तब केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा से इस प्रकार कहा— हे प्रदेशी ! निश्चय ही हम निर्ग्रन्थ श्रमणों के शास्त्रों में ज्ञान के पांच प्रकार बतलाये हैं। वे पांच यह हैं— (१) आभिनिबोधिक ज्ञान ( मतिज्ञान), (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मन: पर्यायज्ञान और (५) केवलज्ञान । प्रदेशी——– आभिनिबोधिक ज्ञान कितने प्रकार का है ? केशी कुमारश्रमण – आभिनिबोधिक ज्ञान चार प्रकार का है—अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा । प्रदेशी — अवग्रह कितने प्रकार का है ? केशी कुमार श्रमण – अवग्रह ज्ञान दो प्रकार का प्रतिपादन किया है इत्यादि धारणा पर्यन्त आभिनिबोधिक ज्ञान का विवेचनं नंदीसूत्र के अनुसार जानना चाहिए। प्रदेशी — श्रुतज्ञान कितने प्रकार का है ? केशी कुमार श्रमण- श्रुतज्ञान दो प्रकार का है, यथा अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य । दृष्टिवाद पर्यन्त श्रुतज्ञान के भेदों का समस्त वर्णन नन्दीसूत्र के अनुसार यहां करना चाहिए । भवप्रत्ययिक और क्षयोपशमिक के भेद से अवधिज्ञान दो प्रकार का है । इनका विवेचन भी नंदीसूत्र के अनुसार यहां जान लेना चाहिए। मनःपर्यायज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा ऋजुमति और विपुलमति । नंदीसूत्र के अनुरूप इनका भी वर्णन यहां करना चाहिए । इसी प्रकार केवलज्ञान का भी वर्णन यहां करना चाहिए । इन पांच ज्ञानों में से आभिनिबोधिक ज्ञान मुझे है, श्रुतज्ञान मुझे है, अवधिज्ञान भी मुझे है, मनःपर्याय ज्ञान भी मुझे प्राप्त है, किन्तु केवलज्ञान प्राप्त नहीं है। वह केवलज्ञान अरिहंत भगवन्तों को होता है। इन चतुर्विध छाद्मस्थिक ज्ञानों के द्वारा हे प्रदेशी ! मैंने तुम्हारे इस प्रकार के आन्तरिक यावत् मनोगत संकल्प
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy