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५०० भेड़ आदि एकत्रित किये थे। बुद्ध के उपदेश से बिना मारे ही उसने यज्ञ का विसर्जन किया। उसने बुद्ध से छोटे-बड़े अनेक प्रश्न पूछे, उसका संकलन संयुक्तनिकाय के कौशलसंयुक्त' में हुआ है। दीघनिकाय के अनुसार२२ राजा प्रदेशी प्रसेनजित के अधीन था और राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जितशत्रु प्रदेशी राजा का आज्ञाकारी सामन्त था। क्योंकि जैन आगमसाहित्य में कहीं भी प्रसेनजित राजा का नाम प्राप्त नहीं है। श्रावस्ती के राजा का नाम उपासकदशांग तथा राजप्रश्नीय सूत्र में जितशत्रु' है। यों वाणिज्यग्राम, चम्पा, वाराणसी, आलम्बिया आदि अनेक नगरियों के राजा का नाम जितशत्रु मिलता है। हमारी दृष्टि से यह ऐसा गुणवाचक शब्द है, जिसका प्रयोग प्रत्येक राजा के लिए प्रयुक्त हो सकता है। यह बहुत कुछ सम्भव है कि प्रसेनजित का ही अपरनाम 'जितशत्रु' जैन साहित्य में आया हो। प्रसेनजित पहले वैदिक परम्परा का अनुयायी था। उसके पश्चात् वह तथागत बुद्ध का अनुयायी बना। वह जैनधर्म का अनुयायी नहीं था, इसलिए उसका जैन साहित्य में वर्णन न आया हो, यह भी सम्भव है। श्रावस्ती के अनुयायी निर्ग्रन्थ धर्म पर पूर्ण आस्थावान् थे। गणधर गौतम और केशीकुमार का मधुर संवाद भी वहीं पर हुआ था। तथा अन्य अनेक प्रसंग भी भगवान् महावीर के जीवन के साथ जुड़े हुए हैं।२७ प्रस्तुत आगम
प्रस्तुत आगम दो भागों में विभक्त है। इनमें प्रथम विभाग में सूर्याभ' नामक देव श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष उपस्थित होता है और वह विविध प्रकार के नाटकों का प्रदर्शन करता है। द्वितीय विभाग में राजा प्रदेशी का केशी कुमारश्रमण से जीव के अस्तित्व और नास्तित्व को लेकर मधुर संवाद है।
प्रस्तुत आगम का प्रारम्भ 'आमलकप्पा' नगरी के वर्णन से होता है। यह नगरी पश्चिम विदेह में श्वेताम्बिका के समीप थी। बौद्ध साहित्य में वुल्लिय राज्य की राजधानी 'अल्लकप्पा' थी। सम्भव है, अल्लकप्पा ही आमलकप्पा हो। यह स्थान शाहाबाद जिले में 'मसार' और 'वैशाली' के बीच अवस्थित था। आमलकप्पा के बाहर 'अम्बसाल' नामक चैत्य था। वह चैत्य वनखण्ड से वेष्टित था। वहां के राजा का नाम 'सेय' और रानी का नाम 'धारिणी' था। भगवान् महावीर का वहां पर शुभागमन हुआ और वे अम्बसाल चैत्य में विराजे। राजा-रानी तथा अन्य नगर-निवासी प्रभु महावीर के पावन प्रवचन को श्रवण करने के लिए पहुंचे। आगमसाहित्य में राजा 'सेय' का अन्यत्र कहीं भी विशेष परिचय नहीं आया है। स्थानांगसूत्र के आठवें स्थान में भगवान् महावीर ने जिन आठ राजाओं को दीक्षित किया, उन में एक राजा का नाम 'सेय' है। आचार्य अभयदेव के अनुसार यही सेय राजा था, जिसने भगवान् महावीर के पास प्रव्रज्या अंगीकार की थी। आचार्य गुणचन्द्र ने लिखा है—एक बार भगवान् महावीर पोतनपुर में पधारे, तब
३१. धम्मपद-अट्ठकथा, ५-१ Buddhist Legends, Vol. II, P. 104 ff. ३२. दीघनिकाय—२/१० ३३. उपासकदशांगसूत्र अध्ययन ९/१० ३४. राजप्रश्नीयसूत्र ३५. उपासकदशांगसूत्र अध्ययन १/अ.२, अ.३, अ.५ . ३६. उत्तराध्ययन, अध्ययन-२३, गाथा ३ ३७. (क) भगवतीसूत्र, शतक-१५वां
(ख) भगवतीसूत्र-शतक-२, उद्देशक-१ ३८. स्थानाङ्ग वृत्ति, पत्र-४०८
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