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५. सातवादी—
आचार्य अभयदेव के अनुसार 'सातवाद' बौद्धों का मत है। सूत्रकृतांग से भी इस कथन की पुष्टि होती है । २७ चार्वाकदर्शन का साध्य सुख है। तथापि वह सातवादी नहीं है। क्योंकि "सातं सातेण विज्जति" सुख का कारण सुख है। प्रस्तुत कार्य-कारण का सिद्धान्त चार्वाकदर्शन का नहीं है। बौद्धदर्शन पुनर्जन्म में निष्ठा रखता है। उसकी मध्यम प्रतिपदा भी कठिनाइयों से बचकर चलने की है, इसलिए वह सातवादी माना गया है। चूर्णिकार ने भी सातवाद को बौद्ध माना है। “सातं सातेण विज्जते " — इस पर चिन्तन करते हुए चूर्णिकार ने लिखा है—' इदानीम् शाक्याः परामृश्यन्ते' अर्थात् अब बौद्धों के सम्बन्ध में हम चिन्तन कर रहे हैं । भगवान् महावीर ने कायक्लेश पर बल दिया। ‘“अत्तहियं खु दुहेण लब्भई" – आत्महित कष्ट से सिद्ध होता है। जैनदर्शन ने बौद्धों के सामने यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया। बौद्धों का मन्तव्य है— शारीरिक कष्ट की अपेक्षा मानसिक समाधि का होना आवश्यक है। कार्य-कारण के सिद्धान्तानुसार दुःख, सुख का कारण नहीं हो सकता। इसलिए सुख, सुख से ही प्राप्त होता है। आचार्य शीलांक ने बौद्धों का सातवाद सिद्धान्त माना ही है, साथ ही जो परिषह को सहन करने में असमर्थ हैं, ऐसे जैन मुनियों का भी अभिमत माना है । २८
६. समुच्छेदवादी
प्रत्येक पदार्थ क्षणिक है। उत्पत्ति - अनन्तर दूसरे ही क्षण में उसका उच्छेद हो जाता है, ऐसा बौद्ध मन्तव्य है। इसलिए बौद्धदर्शन समुच्छेदवादी माना गया है।
७. नित्यवादी
सांख्यदर्शन के सत्कार्यवाद के अनुसार पदार्थ कूटस्थ नित्य है, कारण रूप में प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व रहता है। कोई भी पदार्थ नूतन रूप से पैदा नहीं होता और न वह विनष्ट ही होता है। पदार्थ का आविर्भाव और तिरोभाव मात्र होता है ।२९
८. असत् परलोकवादी
चार्वाकदर्शन न मोक्ष को मानता है और न परलोक आदि को स्वीकार करता है।
राजा प्रदेशी : एक परिचय
राजा प्रदेशी अक्रियावादी था और उसी दृष्टि से उसने अपनी जिज्ञासायें केशी श्रमण के सामने प्रस्तुत की थीं। डा. विन्टरनीत्ज का मन्तव्य है कि प्रस्तुत आगम में पहले राजा प्रसेनजित की कथा थी। उसके पश्चात् प्रसेनजित के स्थान पर 'पएस' लगाकर प्रदेशी के साथ इस कथा का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया है। पर प्रबल प्रमाण नहीं दिया है, अतः हमारी दृष्टि से वह कल्पना ही है। प्रसेनजित महावीर और बुद्ध के समसामयिक राजाओं में एक राजा था। संयुक्तनिकाय के अनुसार उसने एक यज्ञ के लिए ५०० बैल, ५०० बछड़े, ५०० बछड़ियां, ५०० बकरियां,
२६. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४०४
२७.
२८.
२९.
३०. संयुक्तनिकाय कौशलसंयुत्त, यञ्ञसुत्त, ३ /१/१
सूत्रकृतांग — ३/४/६
सूत्रकृतांगवृत्ति, पत्र ९६ : एके शाक्यादय: स्वयूथ्या वा लोचादिनोपतप्ताः ।
सांख्यकारिका–९
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