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________________ उस समय जिन वादों का उल्लेख किया गया है उनकी कौनसी दार्शनिक धारायें थीं ? पर वर्तमान में उन धाराओं के संवाहक दार्शनिक इस प्रकार हैं१. एकवादी १. ब्रह्माद्वैतवादी– वेदान्त। २. विज्ञानाद्वैतवादी— बौद्ध। ३. शब्दाद्वैतवादी— वैयाकरण। ब्रह्माद्वैतवादी की दृष्टि से ब्रह्मा, विज्ञानाद्वैतवादी की दृष्टि से विज्ञान और शब्दाद्वैतवादी की दृष्टि से शब्द पारमार्थिक तत्त्व है। शेष तत्त्व अपारमार्थिक हैं। अतः ये सारे दर्शन एकवादी हैं। अनेकान्त दृष्टि के आलोक में सभी पदार्थ संग्रहनय की दृष्टि से एक हैं और व्यवहारनय की दृष्टि से अनेक हैं। २. अनेकवादी वैशेषिक दर्शन अनेकवादी है। उसके अभिमतानुसार धर्म-धर्मी, अवयव-अवयवी पृथक्-पृथक् हैं।९ ३. मितवादी १. जीवों की संख्या परिमित मानने वाले—इनके मन्तव्य पर स्याद्वादमञ्जरी टीका में चिन्तन किया गया २. आत्मा को अंगुष्ठपर्व या श्यामक तंदुल जितना मानने वाले इस सम्बन्ध में बृहदारण्यक उपनिषद्,२९ छान्दोग्योपनिषद्, २२ कौषीतकी उपनिषद्,२३ मुण्डक उपनिषद् आदि विविध उपनिषदों का मत है। ३. लोक को केवल सात द्वीप समुद्र का मानने वाले इस विचारधारा का उल्लेख भगवती आदि में हुआ ४. निर्मितवादी नैयायिक, वैशेषिक आदि—जो लोक को ईश्वरकृत मानते हैं।२५ १९. स्वतोनुवृत्ति-व्यतिभाजो, भावा न भावान्तरनेयरूपाः । परात्मतत्त्वादतथात्मतत्त्वाद्, द्वयं वदन्तोऽकुशलाः स्खलन्ति ॥ -अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, श्लोक ४ २०. मुक्तोपि वाभ्येतु भवं भवो वा भवस्थशून्योस्तु मितात्मवादे । षड्जीवकायं त्वमनन्तसंख्यमाख्यस्तथा नाथ ! यथा न दोषः ॥ —अन्ययोग०, श्लोक २९ अस्थूल मन एव ह्रस्वमदीर्घमलोहितमस्वेहमच्छायमतमोऽवाय्वनाकाशमसङ्गमरसमगन्धमचक्षुष्कमश्रोत्रमवागऽश्नोऽतेजस्कमप्राणमसुखमनन्तरमबाह्यम् । यथा ब्रीहिर्वा यवो वा ! —बृहदारण्यक उपनिषद् ३।८।८ ५/६/१ २२. प्रदेशमात्रम् ! —छान्दोग्य उपनिषद् ५/१८/१ २३. एष प्रज्ञात्मा इदं शरीरमनुप्रविष्टः । -कौषीतिकी उपनिषद् ३५/४/२० २४. सर्वगतः। -मुण्डक-उपनिषद् १/१/६ २५. ईश्वरः कारणं पुरुषकर्माफल्यदर्शनात् । न पुरुषकर्माभावे फलानिष्पत्तेः ॥ तत्कारितत्वादहेतुः। -न्यायसूत्र, ४/१/१९-२१ [१७]
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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