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________________ चित्त की उद्यानपालकों को आज्ञा १४७ आदर देने के लिए आसन से भी खड़ा नहीं होता और) प्रजाजनों से राज-कर लेकर भी उनका अच्छी तरह से पालन-पोषण और रक्षण नहीं करता है। अतएव हे चित्त! मैं उस सेयविया नगरी में कैसे आ सकता हूं? विवेचन— प्रस्तुत सूत्र में साधु की विहारचर्या का संकेत किया है कि साधु को उन ग्राम, नगर या जनपदों में नहीं जाना चाहिए, जहां राज्य-व्यवस्था उचित नहीं हो, राजभय से प्रजा का जीवन संकट में हो, शासक अन्यायी हो अथवा दुर्भिक्ष महामारी का प्रकोप हो, युद्ध की आशंका हो, युद्ध हो रहा हो। क्योंकि ऐसे स्थानों में यथाकल्प साध्वाचार का पालन किया जाना संभव नहीं है। २२७ – तए णं से चित्ते सारही केसिं कुमारसमणं एवं वयासी किं णं भंते ! तुब्भं पएसिणा रन्ना कायव्वं ? अत्थि णं भंते ! सेयवियाए नगरीए अन्ने बहवे ईसर-तलवर जाव सत्थवाहपभिइओ जे णं देवाणुप्पियं वंदिस्संति नमंसिस्संति जाव पज्जुवासिस्संति विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभिस्संति, पाडिहारिएण पीढ-फलगसेज्जा-संथारेणं उवनिमंतिस्संति । तए णं से केसी कुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी—अवि या इं चित्ता ! जाणिस्सामो। २२७– इस उत्तर को सुनकर चित्त सारथी ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया—हे भदन्त ! आपको प्रदेशी राजा से क्या करना है—क्या लेना-देना है ? भगवन् ! सेयविया नगरी में दूसरे राजा, ईश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह आदि बहुत से जन हैं, जो आप देवानुप्रिय को वंदन करेंगे, नमस्कार करेंगे यावत् आपकी पर्युपासना करेंगे। विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, आहार से प्रतिलाभित करेंगे तथा प्रातिहारिक (वापस लौटाने योग्य) पीठ, फलक, शैय्या, संस्तारक ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रित करेंगे अर्थात् प्रार्थना करेंगे। ____ तब केशी कुमारश्रमण ने चित्त सारथी से कहा—हे चित्त! ध्यान में रखेंगे अर्थात् तुम्हारा आमंत्रण ध्यान में रहेगा। चित्त की उद्यानपालकों को आज्ञा २२८- तए णं से चित्ते सारही केसि कुमारसमणं वंदइ नमसइ, केसिस्स कुमारसमणस्स अंतियाओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, जेणेव सावत्थी णगरी जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, जहा सेयवियाए नगरीए निग्गच्छइ तहेव जाव' वसमाणे कुणालाजणवयस्स मझमझेणं जेणेव केइयअद्धे, जेणेव सेयविया नगरी, जेणेव मियवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ । उज्जाणपालए सद्दावेइ एवं वयासी जया णं देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमारसमणे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागच्छिज्जा तया णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! केसिकुमारसमणं वंदिज्जाह, नमंसिज्जाह, वंदित्ता नमंसित्ता अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणेज्जाह, पडिहारिएणं पीढ-फलग जाव १. देखें सूत्र संख्या २११ ।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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