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________________ केशी कुमारश्रमण का उत्तर १४५ यावत् (उसका मनन कर हर्षित, परितुष्ट, चित्त में आनन्द एवं प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ, सौम्य मानसिक भावों से युक्त एवं हर्षातिरेक से विकसितहृदय होकर अपने आसन से उठा, और उठकर केशी कुमारश्रमण की तीनवार आदक्षिण- प्रदक्षिणा की, वन्दन - नमस्कार किया, वन्दन - नमस्कार करके) इस प्रकार निवेदन किया— भगवन्! 'प्रदेशी राजा के लिए यह महार्थक यावत् उपहार ले जाओ' कहकर जितशत्रु राजा ने मुझे विदा किया है । अतएव हे भदन्त ! मैं सेयविया नगरी लौट रहा हूं। हे भदन्त ! सेयविया नगरी प्रासादीया मन को आनन्द देने वाली है । भगवन् ! सेयविया नगरी दर्शनीय – देखने योग्य है । भदन्त ! सेयविया नगरी अभिरूपा —— मनोहर है । भगवन् ! सेयविया नगरी प्रतिरूपा — अतीव मनोहर है। अतएव हे भदन्त ! आप सेयविया नगरी में पधारने की कृपा करें। २२५—– तए णं से केसी कुमारसमणे चित्तेणं सारहिणा एवं वुत्ते समाणे चित्तस्स सारहिस्स एयम णो आढाइ, णो परिजाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ । तणं से चित्ते सारही केसी कुमारसमणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी एवं खलु अहं भंते ! जियसत्तुणा रन्ना पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं जाव विसज्जिए, तं चेव जाव समोसरह णं भंते ! तुब्भे सेयवियं नगरिं । २२५ - इस प्रकार से चित्त सारथी द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भी केशी कुमार श्रमण ने चित्त सारथी के कथन का आदर नहीं किया अर्थात् उसे स्वीकार नहीं किया। वे मौन रहे । तब चित्त सारथी ने पुनः दूसरी और तीसरी बार भी इसी प्रकार कहा— हे भदन्त ! प्रदेशी राजा के लिए महाप्रयोजन साधक उपहार देकर जितशत्रु राजा ने मुझे विदा कर दिया है। अतएव मैं लौट रहा हूं । सेयविया नगरी प्रासादिक है, आप वहां पधारने की अवश्य कृपा करें। केश कुमारश्रमण का उत्तर २२६— तए णं केसी कुमारसमणे चित्तेण सारहिणा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समा चित्तं सारहिं एवं वयासी चित्ता ! से जहानामए वणसंडे सिया— किण्हे किण्होभासे जाव पडिरूवे, से णूणं चित्ता ! से वणसंडे बहूणं दुपय- चउप्पय-मिय- पसु पक्खी - सिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे ? हंता अभिगमणिज्जे । तंसि च णं चित्ता ! वणसंडंसि बहवे भिलुंगा नाम पावसउणा परिवसंति, जे णं तेसिं बहूणं दुपय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खी - सिरीसिवाणं ठियाणं चेव मंससोणियं आहारेंति । से चित्ता ! से वणसंडे तेसि णं बहूणं दुपय जाव सिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे ? णो तिट्ठे समट्ठे । कम्हा णं ? भंते ! सोवसग्गे । वामेव चित्ता ! तुब्भं पि सेयवियाए णयरीए पएसी नामं राया परिवसइ अधम्मिए जाव (अधम्मिट्ठे-अधम्मक्खाई - अधम्माणुए - अधम्मपलोई - अधम्मपजणणे - अधम्मसीलसमुयायारे - अधम्मेण
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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