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________________ १३४ राजप्रश्नीयसूत्र अर्थात् अधीनस्थ राजा था। तब प्रश्न होता है कि अधीनस्थ राजा होते हुए भी राजा प्रदेशी का जितशत्रु राजा को भेंट भेजने और चित्त सारथी को श्रावस्ती जाकर राजव्यवस्था देखने के संकेत का क्या कारण था ? प्रतीत होता है, अनेक बार अधीनस्थ राजा अपने से मुख्य राजा की अपेक्षा बल, सेना, कोष और कितनी ही दूसरी बातों में बढ़ने का गुप्त प्रयास करते हैं और प्रच्छन्न रूप से उसे अपदस्थ करके स्वयं उसके राज्य पर अधिकार करने आदि का प्रयत्न करते हैं। इस स्थिति का पता जब उस मुख्य राजा को लगता है, तब वह राजनीति का अवलंबन लेकर उसकी खोजबीन करने का प्रयास करता है। इस प्रयास के दूसरे-दूसरे उपायों की तरह भेंट भेजना भी एक उपाय है। यही बात प्रदेशी राजा द्वारा कहे गये इन शब्दों से विदित होती है___'तुम यह भेंट दे आओ तथा जितशत्रु राजा के साथ रहकर स्वयं वहां की शासनव्यवस्था, राजा की दैनिक चर्या, राजनीति और व्यवहार को देखो, सुनो और अनुभव करो।' २१२– तए णं से चित्ते सारही विसज्जित्ते समाणे जियसत्तुस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंट आसरहं दुरूहइ, सावत्थिं नगरि मझमझेणं जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्यावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जिमियभुत्तत्तरागए वि य णं समाणे पुव्वावरण्हकालसमयंसि गंधव्वेहि य णाडगेहि य उवनच्चिज्जमाणे उवनच्चिन्जमाणे, उवगाइज्जमाणे, उवगाइज्जमाणे, उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इढे सद्द-फरिस-रसरूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणे विहरइ । २१२- तत्पश्चात् चित्त सारथी विदाई लेकर जितशत्रु राजा के पास से निकला और जहां बाह्य उपस्थानशाला थी, चार घंटों वाला अश्वरथ खड़ा किया था, वहां आया। आकर उस चातुर्घट अश्वरथ पर सवार हुआ। फिर श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच से होता हुआ राजमार्ग पर अपने ठहरने के लिए निश्चित किये गये आवास-स्थान पर आया। वहां घोड़ों को रोका, रथ को खड़ा किया और नीचे उतरा। इसके पश्चात् उसने स्नान किया, बलिकर्म किया और कौतुक, मंगल प्रायश्चित्त करके शुद्ध और उचित योग्य मांगलिक वस्त्र पहने एवं अल्प किन्तु बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। भोजन आदि करके तीसरे प्रहर गंधर्वो, नर्तकों और नाट्यकारों के संगीत, नृत्य और नाट्याभिनयों को सुनते-देखते हुए तथा इष्ट—अभिलषित शब्द, स्पर्श, रस, रूप एवं गंधमूलक पांच प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगते हुए विचरने लगा। श्रावस्ती नगरी में केशी कुमारश्रमण का पदार्पण २१३ – तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दंसणसंपण्णे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे लज्जालाघवसंपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियणिद्दे जितिंदिए जियपरीसहे जीवियास-मरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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