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राजप्रश्नीयसूत्र
(रथ, हाथी, अश्व आदि) कोश, कोठार (अन्न-भण्डार) पुर और अंत:पुर की स्वयं देखभाल किया करता था। चित्त सारथी
२०९– तस्स णं पएसिस्स रन्नो जेटे भाउयवयंसए चित्ते णाम सारही होत्था, अड्डे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए, साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-अत्थसत्थ-ईहा-मइविसारए, उप्पत्तियाएवेणतियाए-कम्मयाए-पारिणामियाए चउव्विहाए बुद्धीए उववेए, पएसिस्स रण्णो बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य कुटुंबेसु य मंतेसु य गुझेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी, पमाणं, आहारे, आलंबणं, चक्खू, मेढिभूए, पमाणभूए, आहारभूए, चक्खुभूए, सव्वट्ठाणसव्वभूमियासु लद्धपच्चए विदिण्णविचारे रज्जधुराचिंतए आवि होत्था ।
__ २०९- उस प्रदेशी राजा का उम्र में बड़ा (ज्येष्ठ) भाई एवं मित्र सरीखा चित्त नाम सारथी था। वह समृद्धिशाली यावत् (दीप्त-तेजस्वी, प्रसिद्ध, विशाल भवनों, अनेक सैकड़ों शय्या-आसन-यान-रथ आदि तथा विपुल धन, सोने-चांदी का स्वामी, अर्थोपार्जन के उपायों का ज्ञाता था। उसके यहां इतना भोजन-पान बनता था कि खाने के बाद भी बचा रहता था। दास, दासी, गायें, भैंसें, भेड़ें, बहुत बड़ी संख्या में उसके यहां थी) और बहुत से लोगों के द्वारा भी पराभव को प्राप्त नहीं करने वाला था। साम-दण्ड-भेद और उपप्रदान नीति, अर्थशास्त्र एवं विचारविमर्श प्रधान बुद्धि में विशारद कुशल था। औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी इन चार प्रकार की बुद्धियों से युक्त था। प्रदेशी राजा के द्वारा अपने बहुत से कार्यों में, कार्य में सफलता मिलने के उपायों में, कौटुम्बिक कार्यों में, मन्त्रणा (सलाह) में, गुप्त कार्यों में, रहस्यमय गोपनीय प्रसंगों में, निश्चय निर्णय करने में, राज्य सम्बन्धी. व्यवहार-विधानों में पूछने योग्य था, बार-बार विशेष रूप से पूछने योग्य था। अर्थात् सभी छोटे-बड़े कार्यों में उससे सलाह ली जाती थी। वह सबके लिए मेढी (खलिहान के केन्द्र में गाड़ा हुआ स्तम्भ, जिसके चारों ओर घूमकर बैल धान्य कुचलते हैं) के समान था, प्रमाण था, पृथ्वी के समान आधार—आश्रय था, रस्सी के समान आलम्बन था, नेत्र के समान मार्गदर्शक था, मेढीभूत था, प्रमाणभूत था, आधार और अवलम्बनभूत था एवं चक्षुभूत था। सभी स्थानों सन्धिविग्रह आदि कार्यों में और सभी भूमिकाओं मन्त्री, अमात्य आदि पदों में प्रतिष्ठा-प्राप्त था। सबको विचार देने वाला था अर्थात् सभी का विश्वासपात्र था तथा चक्र की धुरा के समान राज्य-संचालक था—सकल राज्य कार्यों का प्रेक्षक था।
विवेचन— उक्त वर्णन से यह प्रतीत होता है कि चित्त सारथी अतिनिपुण राजनीतिज्ञ, राज्यव्यवस्था करने में प्रवीण एवं अत्यन्त बुद्धिशाली था। उसे औत्पत्तिकी आदि चार प्रकार की बुद्धियों से युक्त बताया है। इन चार प्रकार की बुद्धियों का स्वरूप इस प्रकार है
(१) औत्पत्तिकी बुद्धि- अदृष्ट, अननुभूत और अश्रुत किसी विषय को एकदम समझ लेने तथा विषम समस्या के समाधान का तत्क्षण उपाय खोज लेने वाली बुद्धि या अकस्मात्, सहसा, तत्काल उत्पन्न होने वाली सूझ।
(२) वैनयिकी- गुरुजनों की सेवा-शुश्रूषा, विनय करने से प्राप्त होने वाली बुद्धि।
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देखें सूत्र संख्या ४