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________________ कुणाला जनपद, श्रावस्ती नगरी, जितशत्रु राजा, चित्त सारथी का श्रावस्ती की ओर प्रयाण १३१ ___(३) कार्मिकी— कार्य करते-करते अनुभव-अभ्यास से प्राप्त होने वाली दक्षता, निपुणता। इसको कर्मजा अथवा कर्मसमुत्था बुद्धि भी कहते हैं। (४) पारिणामिकी- उम्र के परिपाक से अर्जित विभिन्न अनुभवों से प्राप्त होने वाली बुद्धि। उक्त चार बुद्धियां मतिज्ञान के श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित इन दो मूल विभागों में से दूसरे विभाग के अन्तर्गत हैं। जो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान के पूर्वकालिक संस्कार के निमित्त से उत्पन्न किन्तु वर्तमान में श्रुतनिरपेक्ष होता है, उसे श्रुतनिश्रित कहते हैं एवं जिसमें श्रुतज्ञान के संस्कार की किंचित्मात्र भी अपेक्षा नहीं होती है वह अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान कहलाता है। कुणाला जनपद, श्रावस्ती नगरी, जितशत्रु राजा २१०– तेणं कालेणं तेणं समयेणं कुणाला नाम जणवए होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्धे । तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नामं नयरी होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धा जाव' पडिरूवा । ___ तीसे णं सावत्थीए णगरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए कोट्ठए नामं चेइए होत्था, पोराणे जावपासादीए । ___ तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रन्नो अंतेवासी जियसत्तू नामं राया होत्था, महयाहिमवंत जाव विहरइ । २१०- उस काल और उस समय में कुणाला नामक जनपद-देश था। वह देश वैभवसंपन्न, स्तिमितस्वपरचक्र (शत्रुओं) के भय से मुक्त और धन-धान्य से समृद्ध था। उस कुणाला जनपद में श्रावस्ती नाम की नगरी थी, जो ऋद्ध, स्तिमित, समृद्ध यावत् (देखने योग्य, मन को प्रसन्न करने वाली, अभिरूप-मनोहर और) प्रतिरूप-अतीव मनोहर थी। ___उस श्रावस्ती नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान दिक्कोण) में कोष्ठक नाम का चैत्य था। यह चैत्य अत्यन्त प्राचीन यावत् प्रतिरूप था। ___ उस श्रावस्ती नगरी में प्रदेशी राजा का अन्तेवासी जैसा अर्थात् अधीनस्थ —आज्ञापालक जितशत्रु नामक राजा था, जो महाहिमवन्त आदि पर्वतों के समान प्रख्यात था। विवेचन— दीघनिकाय के 'महासुदस्सन सुत्तंत' में श्रावस्ती नगरी को उस समय का एक महानगर बताया है। प्राचीन भूगोलशोधकों का अभिमत है कि वर्तमान में सेहट-मेहट के नाम से जो ग्राम जाना जाता है, वह प्राचीन श्रावस्ती नगरी है। चित्त सारथी का श्रावस्ती की ओर प्रयाण २११- तए णं से पएसी राया अन्नया कयाइ महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावित्ता चित्तं सारहिं सद्दावेति, सद्दावित्ता एवं पयासी____ गच्छ णं चित्ता ! तुमं सावत्थिं नगरि जियसत्तुस्स रण्णो इमं महत्थं जाव (महग्धं, महरिहं, १. देखें सूत्र संख्या १ २. देखें सूत्र संख्या २
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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