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राना सूर्यकान्ता और युवराज सूर्यकान्त
१२९ से सुरभिपुर पधारे। परन्तु वर्तमान में यह नगरी कहां है, एतद् विषयक कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है।
दीघनिकाय (बौद्ध ग्रन्थ) के 'पायासि सुत्तंत' में इस नगरी का नाम 'सेतव्या' बताया है और कौशल देश में विहार करते हुए कुमार कश्यप इस नगरी में आये थे, यह सूचित करके इसे कोसल देश का नगर बताया है— 'येन सेतव्या नाम कोसलानं नगरं तद् अवसरि' (-दीघ-निकाय भाग २)।
जैन दृष्टि से कोशल देश अयोध्या और उसके आस-पास का प्रदेश माना गया है। सेयविया का किसी किसी ने 'श्वेतविका' यह भी संस्कृत रूपान्तर किया है।
'पएसी' सूत्र में उल्लिखित इस शब्द का टीकाकार आचार्य ने 'प्रदेशी' संस्कृत भाषान्तर किया है और आवश्यक सूत्रों में 'पदेशी' शब्द का प्रयोग किया है।
___ इस राजा सम्बन्धी जो वर्णन इस 'रायपसेणइय' सूत्र में आगे किया जाने वाला है, उससे मिलता-जुलता वर्णन दीघनिकाय के, पायासि सुत्तंत' में भी किया गया है। इसमें मुख्य प्रश्नकार राजा पयासी है और उसका वंश राजन्य एवं सम्बन्ध कोशल वंश के राजा 'पसेनदि' के साथ बताया है। रायपसेणइय' सूत्र में जिस प्रकार से राजा पयेसी को अत्यन्त पापिष्ठ के रूप में वर्णित किया है, वैसा तो दीर्घनिकाय में नहीं कहा है, किन्तु वहां इतना उल्लेख अवश्य है कि इस राजा के विचार पापमय थे और यह मानता था कि परलोक नहीं, औपपातिक सत्ता नहीं है और सुकृत-दुष्कृत का किसी प्रकार का फल-विपाक नहीं है (—दीघनिकाय, भाग-२)।
इस राजा के विषय में और कोई ऐतिहासिक जानकारी नहीं मिलती है। रानी सूर्यकान्ता और युवराज सूर्यकान्त
२०८- तस्स णं पएसिस्स रन्नो सूरियकंता नामं देवी होत्था, सुकुमालपाणिपाया धारिणी वण्णओ' । पएसिणा रन्ना सद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इढे सद्दे फरिसे रसे रूवे जाव (गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणा) विहरइ ।
तस्स णं पएसिस्स रण्णो जेट्टे पुत्ते सूरियकंताए देवीए अत्तए सूरियकंते नाम कुमारे होत्था, सुकुमालपाणिपाए जाव पडिरूवे ।
से णं सूरियकंते कुमारे जुवराया वि होत्था, पएसिस्स रन्नो रज्जं च रटुं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे पच्चुवेक्खमाणे विहरइ ।
२०८— उस प्रदेशी राजा की सूर्यकान्ता नाम की रानी थी, जो सुकुमाल हाथ पैर आदि अंगोपांग वाली थी, इत्यादि धारिणी रानी के समान इसका वर्णन करना चाहिए। वह प्रदेशी राजा के प्रति अनुरक्त—अतीव स्नेहशील थी, उससे कभी विरक्त नहीं होती थी और इष्ट प्रिय शब्द, स्पर्श, रस (यावत् गन्धमूलक) अनेक प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगती हुई रहती थी।
उस प्रदेशी राजा का ज्येष्ठ पुत्र और सूर्यकान्ता रानी का आत्मज सूर्यकान्त नामक राजकुमार था। वह सुकोमल हाथ पैर वाला, अतीव मनोहर था।
वह सूर्यकान्त कुमार युवराज भी था। वह प्रदेशी राजा के राज्य (शासन), राष्ट्र (देश), बल (सेना), वाहन १. धारिणी रानी के लिए देखिए सूत्र संख्या ५