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केकय अर्ध जनपद और प्रदेशी राजा
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खाया, ऐसा क्या कार्य किया, कैसा आचरण किया और तथारूप श्रमण अथवा माहण से ऐसा कौनसा धार्मिक आर्य सुवचन सुना कि जिससे सूर्याभदेव ने यह दिव्य देवऋद्धि यावत् देवप्रभाव उपार्जित किया है, प्राप्त किया है और अधिगत किया है ?
hea अर्ध जनपद और प्रदेशी राजा
२०७— 'गोयमाइ' समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी
एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे के अद्धे नामं जणवए होत्था, रिद्धत्थिमियसमिद्धे सव्वोउयफलसमिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए जाव (दरिसणिज्जे, अभिरूवे ) पडिवे ।
तत्थ णं केयइअद्धे जणवए सेयविया णामं नगरी होत्था, रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव' पडिरूवा ।
तीसे णं सेयवियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे एत्थ णं मिगवणे णामं उज्जाणे होत्था— रम्मे नंदणवणप्पगासे, सव्वोउयफलसमिद्धे, सुभसुरभिसीयलाए छायाए सव्वओ चेव समणुबद्धे पासादीए जाव पडिरूवे ।
तत्थ णं सेयवियाए णगरीय पएसी णामं राया होत्था, महयाहिमवंत जाव विहरइ । अधम्मिए, अधम्मिट्ठे, अधम्मक्खाई, अधम्माणुए, अधम्मपलोई, अधम्मपजणणे, अधम्मसीलसमुयायारे, अधम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणे 'हण'-'छिंद'-'भिंद'-पवत्तए, लोहियपाणी, पावे, रुद्दे, खुद्दे, साहस्सीए उक्कंचण - वंचण - माया - नियडि - कूड - कवड - सायिसंजोगबहुले, निस्सीले, निव्वए, निग्गुणे, निम्मेरे, निप्पच्चक्खाणपोसहोववासे, बहूणं दुपय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खीसिरिसवाण घायाए वहाए उच्छायणयाए अभ्रम्मकेऊ, समुट्ठिए, गुरूणं णो अब्भुट्ठेति, णो विणयं पउंजइ, सयस्स वि य णं जणवयस्स णो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेइ ।
२०७— हे गौतम! इस प्रकार गौतम स्वामी को सम्बोधित कर श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम स्वामी से इस
प्रकार कहा
हे गौतम! उस काल और उस समय में (इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे रूप काल एवं केशीस्वामी कुमार श्रमण के विचरने के समय में) इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र में केकयअर्ध ( केकयि - अर्ध) नामक जनपद—देश था। जो भवनादिक वैभव से युक्त, स्तिमित- स्वचक्र - परचक्र के भय से रहित और समृद्ध धनधान्यादि वैभव से सम्पन्न — -- परिपूर्ण था । सर्व ऋतुओं के फल-फूलों से समृद्ध, रमणीय, नन्दनवन के समान मनोरम, प्रासादिक — मन को प्रसन्न करने वाला, यावत् (दर्शनीय, बारंबार देखने योग्य प्रतिरूप) अतीव मनोहर था ।
उस केकय-अर्ध जनपद में सेयविया नाम की नगरी थी । यह नगरी भी ऋद्धि-सम्पन्न स्तमित — शत्रुभय से मुक्त एवं समृद्धिशाली यावत् प्रतिरूप थी ।
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देखें सूत्र संख्या १
देखें सूत्र संख्या ४