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सूर्याभदेव का सभा-वैभव
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तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देव - साहस्सीओ बारससु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पच्चत्थिमेणं सत्त अणियाहिवइणो सत्तहिं भद्दासहिं णिसीयंति ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चउद्दिसिं सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ सोलसहिं भद्दासणसाहस्सीहिं णिसीयंति, तं जहा —— पुरत्थिमिल्लेणं चत्तारि साहस्सीओ० ।
ते णं आयरक्खा सन्नद्धबद्धवम्मियकवया, उप्पीलियसरासणपट्टिया, पिणद्धगेविज्जा आविद्धविमलवरचिंधपट्टा, गहियाउहपहरणा, तिणयाणि तिसंधियाइं वयरामयकोडीणि धणूइं पगिज्झ पडियाइयकंडकलावा णीलपाणिणो, पीतपाणिणो रत्तपाणिणो, चावपाणिणो-चारुपाणिणो, चम्मपाणिणो, दंडपाणिणो, खग्गपाणिणो, पासपाणिणो, नीलपीयरत्तचावचारुचम्मदंडखग्गपासधरा, आयरक्ख रक्खोवगा, गुत्ता, गुत्तापालिया जुत्ता, जुत्तपालिया पत्तेयं - पत्तेयं समयओ विणयओ किंभू च ।
२०५– तदनन्तर उस सूर्याभदेव की पश्चिमोत्तर और उत्तरपूर्व दिशा में स्थापित चार हजार भद्रासनों पर चार हजार सामानिक देव बैठे।
उसके बाद सूर्याभदेव की पूर्व दिशा में चार भद्रासनों पर चार अग्रमहिषियां बैठीं ।
तत्पश्चात् सूर्याभ देव के दक्षिण - पूर्वदिक्कोण में अभ्यन्तर परिषद् के आठ हजार देव आठ हजार भद्रासनों पर बैठे।
सूर्याभदेव की दक्षिण दिशा में मध्यम परिषद् के दस हजार देव दस हजार भद्रासनों पर बैठे।
तदनन्तर सूर्याभ देव के दक्षिण-पश्चिम दिग्भाग में बाह्य परिषद् के बारह हजार देव बारह हजार भद्रासनों पर बैठे।
तत्पश्चात् सूर्याभदेव की पश्चिम दिशा में सात अनीकाधिपति सात भद्रासनों पर बैठे।
इसके बाद सूर्याभदेव की चारों दिशाओं में सोलह हजार आत्मरक्षक देव पूर्व दिशा में चार हजार, दक्षिण दिशा में चार हजार, पश्चिम दिशा में चार हजार और उत्तर दिशा में चार हजार, इस प्रकार सोलह हजार भद्रासनों पर बैठे।
वे सभी आत्मरक्षक देव अंगरक्षा के लिए गाढबन्धन से बद्ध कवच को शरीर पर धारण करके, बाण एवं प्रत्यंचा से सन्नद्ध धनुष को हाथों में लेकर, गले में ग्रैवेयक नामक आभूषण - विशेष को पहनकर, अपने-अपने विमल और श्रेष्ठ चिह्नपट्टकों को धारण करके, आयुध और पहरणों से सुसज्जित हो, तीन स्थानों पर नमित और जुड़े हुए वज्रमय अग्र भाग वाले धनुष, दंड और बाणों को लेकर, नील- पीत-लाल प्रभा वाले बाण, धनुष चारु (शस्त्रविशेष) चमड़े के गोफन, दंड, तलवार, पाश-जाल को लेकर एकाग्रमन से रक्षा करने में तत्पर, स्वामी - आज्ञा का पालन करने में सावधान, गुप्त - आदेश पालन में तत्पर सेवकोचित गुणों से युक्त, अपने - अपने कर्त्तव्य का पालन करने के लिए उद्यत, विनयपूर्वक अपनी आचार-मर्यादा के अनुसार किंकर - सेवक जैसे होकर स्थित थे।