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________________ १२४ राजप्रश्नीयसूत्र २०२– तदनन्तर उन आभियोगिक देवों ने सूर्याभदेव की इस आज्ञा को सुनकर यावत् स्वीकार करके सूर्याभ विमान के शृंगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, प्राकारों, अट्टालिकाओं, चरिकाओं, द्वारों, गोपुरों, तोरणों, आरामों, उद्यानों, वनों, वनराजियों और वनखण्डों की अर्चनिका की और अर्चनिका करके सूर्याभदेव के पास आकर आज्ञा वापस लौटाई—आज्ञानुसार कार्य हो जाने की सूचना दी। २०३-तते णं से सूरियाभे देवे जेणेव णंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, नंदापुक्खरिणिं पुरथिमिल्लेणं तिसोपाणपडिरूवएणं पच्चीरुहति, हत्थपाए पक्खालेइ, णंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरेइ, जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव पहारित्थ गमणाए । २०३– तदनन्तर वह सूर्याभदेव जहां नन्दा पुष्करिणी थी, वहां आया और पूर्व दिशावर्ती त्रिसोपानों से नन्दा पुष्करिणी में उतरा। हाथ पैरों को धोया और फिर नन्दा पुष्करिणी से बाहर निकला। निकल कर सुधर्मा सभा की ओर चलने के लिए उद्यत हुआ। २०४- तए णं सूरियाभे देवे चउहि सामाणियसाहस्सीहिं जाव' सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहि य बहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव नाइयरवेणं जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छइ, सभं सुधम्मं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे । ___२०४— इसके बाद सूर्याभदेव चार हजार सामानिक देवों यावत् (परिवार सहित चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों-सेनाओं, सात अनीकाधिपतियों सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा और दूसरे भी बहुत से सूर्याभ विमानवासी देव-देवियों से परिवेष्टित होकर सर्व ऋद्धि यावत् तुमुल वाद्यध्वनि पूर्वक जहां सुधर्मा सभा थी वहां आया और पूर्व दिशा के द्वार से सुधर्मा सभा में प्रविष्ट हुआ। प्रविष्ट होकर सिंहासन के समीप आया और पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गया। सूर्याभदेव का सभा-वैभव __ २०५– तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स अवरुत्तरेणं उत्तरपुरथिमेणं दिसिभाएणं चत्तारि य सामाणियसाहस्सीओ चउसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पुरथिमिल्लेणं चत्तारि अग्गमहिस्सीओ चउसु भद्दासणेसु निसीयंति । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपुरथिमेणं अब्भिंतरियपरिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ अट्ठसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणेणं मज्झिमाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ दससु, भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति । १. देखें सूत्र संख्या ७ २. देखें सूत्र संख्या १९
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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