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________________ सूर्याभदेव का अभिषेक-महोत्सव १०५ १८८- तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामाणियपरिसोववनगाणं देवाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा-निसम्म हट्ठ-तुट्ठ जाव (चित्तामाणंदिए-पीइमणे-परमसोमणस्सिए-हरिसवसविसप्पमाण) हयहियए सयणिज्जाओ अब्भुटेति, सयणिज्जाओ अब्भुढेत्ता उववायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अणुपयाहिणीकरेमाणे-अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं जलमजणं करेइ, करित्ता जलकिडं करेइ, करित्ता जलाभिसेयं करेइ, करित्ता आयंते चोक्खे परमसूइभूए हरयाओ पच्चोत्तरइ, पच्चोत्तरित्ता जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता अभिसेयसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने । १८८– तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव उन सामानिकपरिषदोपगत देवों से इस अर्थ —बात को सुनकर और हृदय में अवधारित-मनन कर हर्षित, सन्तुष्ट यावत् (चित्त में आनन्दित, अनुरागी, परम प्रसन्न, हर्षातिरेक से विकसित) हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से निकला, निकलकर हृद (जलाशयतालाब) पर आया, आकर ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ। प्रविष्ट होकर पूर्वदिशावर्ती त्रिसोपान पंक्ति से नीचे उतरा, उतर कर जल में अवगाहन और जलमज्जन (स्नान) किया, जल-मज्जन करके जलक्रीड़ा की, जलक्रीड़ा करके जलाभिषेक किया, जलाभिषेक करके आचमन (कुल्ला आदि) द्वारा अत्यन्त स्वच्छ और शुचिभूत-शुद्ध होकर ह्रद से बाहर निकला, निकल कर जहां अभिषेकसभा थी वहां आया, वहां आकर अभिषेकसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती द्वार से उसमें प्रविष्ट हुआ, प्रविष्ट होकर सिंहासन के समीप आया और आकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गया। सूर्याभदेव का अभिषेक-महोत्सव १८९– तए णं सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा देवा आभिओगिए देवे सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सूरियाभस्स देवस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेयं उवट्ठवेह । ___ १८९- तदनन्तर सूर्याभदेव की सामानिक परिषद् के देवों ने आभियोगिक देवों को बुलाया और बुलाकर उनसे कहा___ देवानुप्रियो! तुम लोग शीघ्र ही सूर्याभदेव का अभिषेक करने हेतु महान् अर्थ वाले महर्घ (बहुमूल्य) एवं महापुरुषों के योग्य विपुल इन्द्राभिषेक की सामग्री उपस्थित करो तैयार करो। १९०- तए णं ते आभिओगिआ देवा सामाणियपरिसोववन्नेहिं देवेहिं एवं वुत्ता समाणा
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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