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________________ ९६ राजप्रश्नीयसूत्र विष्कम्भ की अपेक्षा सोलह योजन लम्बी-चौड़ी और आठ योजन मोटी तथा सर्वात्मना रत्नों से बनी हुई यावत् प्रतिरूप अतीव मनोरम है। १७४- तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं माणवए चेइएखंभे पण्णत्ते, सर्टि जोयणाई उर्दू उच्चत्तेणं जोयणं उव्वेहेणं, जोयणं विक्खंभेणं, अडयालीसंसिए, अडयालीसइ कोडीए, अडयालीसइ विग्गहिए सेसं जहा महिंदज्झयस्स । ____ माणवगस्स णं चेइयखंभस्स उवरि बारस जोयणाई ओगाहेत्ता, हेट्टावि बारस जोयणाई वज्जेत्ता मज्झे छत्तीसाए जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवण्णरूप्पमया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरूप्पमएसु फलएसु बहवे वइरामया णागदंता पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु नागदंतेसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता । तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गया पण्णत्ता । तेसु णं वयरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहवे जिणसकहातो संनिक्खित्ताओ चिटुंति । ताओ णं सूरियाभस्स देवस्स अन्नेसिं च बहूणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ । माणवगस्स चेइयखंभस्स उवरि अट्ठ अट्ठ मंगलगा, झया छत्ताइच्छत्ता । १७४– उस मणिपीठिका के ऊपर एक माणवक नामक चैत्यस्तम्भ है। वह ऊंचाई में साठ योजन ऊंचा, एक योजन जमीन के अंदर गहरा, एक योजन चौड़ा और अड़तालीस कोनों, अड़तालीस धारों और अड़तालीस आयामों—पहलुओं वाला है। इसके अतिरिक्त शेष वर्णन माहेन्द्रध्वज जैसा जानना चाहिए। ___ उस माणवक चैत्यस्तम्भ के ऊपरी भाग में बारह योजन और नीचे बारह योजन छोड़कर मध्य के शेष छत्तीस योजन प्रमाण भाग स्थान में अनेक स्वर्ण और रजतमय फलक—पाटिये लगे हुए हैं। उन स्वर्ण-रजतमय फलकों पर अनेक वज्रमय नागदंत खूटियां हैं। उन वज्रमय नागदंतों पर बहुत से रजतमय सीके लटक रहे हैं। उन रजतमय सींकों में वज्रमय गोल गोल समुद्गक (डिब्बे) रखे हैं। उन गोल-गोल वज्ररत्नमय समुद्गकों में बहुत-सी जिनअस्थियां सुरक्षित रखी हुई हैं। वे अस्थियां सूर्याभदेव एवं अन्य देव-देवियों के लिए अर्चनीय यावत् (वंदनीय, पूजनीय, सम्माननीय, सत्कारणीय तथा कल्याण, मंगल देव एवं चैत्य रूप में) पर्युपासनीय हैं। उस माणवक चैत्य के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं। देव-शय्या १७५- तस्स माणवगस्स चेइयखंभस्स पुरथिमेणं एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता, अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोअणाइं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं महेगे सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणवण्णओ सपरिवारो । ___ तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता, अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमया अच्छा जाव पडिरूवा । तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं महेगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते ।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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