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________________ ९५ सुधर्मासभावर्ती मनोगुलिकायें गोमानसिकायें, माणवक चैत्यस्तम्भ सुधर्मासभावर्ती मनोगुलिकायें गोमानसिकायें १७१– सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं मणोगुलियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहापुरथिमेणं सोलससाहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, दाहिणेणं अट्ठसाहस्सीओ, उत्तरेणं अट्ठसाहस्सीओ । ___ तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरूप्पमया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवन्नरूप्पमएसु फलगेसु बहवे वइरामया णागदंता पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु किण्हसुत्तवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा चिटुंति । १७१— सुधर्मा सभा में अड़तालीस हजार मनोगुलिकायें (छोटे-छोटे चबूतरे) हैं, वे इस प्रकार हैं—पूर्व दिशा में सोलह हजार, पश्चिम दिशा में सोलह हजार, दक्षिण दिशा में आठ हजार और उत्तर दिशा में आठ हजार। उन मनोगुलिकाओं के ऊपर अनेक स्वर्ण एवं रजतमय फलक—पाटिये और उन स्वर्ण रजतमय पाटियों पर अनेक वज्ररत्नमय नागदंत लगे हैं। उन वज्रमय नागदंतों पर काले सूत से बनी हुई गोल लंबी-लंबी मालायें लटक रही हैं। १७२– सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं गोमाणसियासाहस्सीओ पन्नत्ताओ । जह मणोगुलिया जाव णागदंतगा । तेसु णं णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता । तेसु णं रययामएसु सिक्कगेसु बहवे वेरुलियामइओ धूवघडियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं धूवघडियाओ कालागुरुपवर जाव चिट्ठति । १७२- सुधर्मा सभा में अड़तालीस हजार गोमानसिकायें (शय्या रूप स्थानविशेष) रखी हुई हैं। नागदन्तों पर्यन्त इनका वर्णन मनोगुलिकाओं के समान समझ लेना चाहिए। उन नागदंतों के ऊपर बहुत से रजतमय सीके लटके हैं। उन रजतमय सीकों में बहुत-सी वैडूर्य रत्नों से बनी हुई धूपघटिकायें रखी हैं। वे धूपघटिकायें काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दुरुष्क आदि की सुगंध से मन को मोहित कर रही हैं। माणवक चैत्यस्तम्भ १७३– सभाए णं सुहम्माए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीहिं उवसोभिए मणिफासो य उल्लोयो य । ___ तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता, सोलस जोयणाई आयामविखंभेणं अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं सव्वमणिमयी जाव पडिरूवा । १७३– उस सुधर्मा सभा के भीतर अत्यन्त रमणीय सम भू-भाग है। वह भूमिभाग यावत् मणियों से उपशोभित है आदि मणियों के स्पर्श एवं चंदेवा पर्यन्त का सब वर्णन यहां पूर्ववत् कर लेना चाहिए। उस अति सम रमणीय भूमिभाग के अति मध्यदेश में एक विशाल मणिपीठिका बनी हुई है। जो आयाम
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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