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________________ राजप्रश्नीयसूत्र १६८ — तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरतो पत्तेयं - पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणि पेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ । ९४ १६८– उन प्रत्येक चैत्यवृक्षों के आगे एक-एक मणिपीठिका है। ये मणिपीठिकायें आठ योजन लंबी-चौड़ी, चार योजन मोटी, सर्वात्मना मणिमय निर्मल यावत् प्रतिरूप — अतिशय मनोरम हैं। माहेन्द्र-ध्वज १६९ – तासि णं मणिपेढियाणं उवरिं पत्तेयं पत्तेयं महिंदज्झए पण्णत्ते । ते णं महिंदज्झया सट्ठि जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं वइरामय-वट्ट-लट्ठ-संठिय-सुसिलिट्ठ - परिघट्ट- मट्ठ- सुपतिट्ठिए-विसिट्ठे-अणेगवर-पंचवण्णकुडभीसहस्सुस्सिए - परिमंडियाभिरामे-वाउद्ध्यविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिच्छत्तकलिते, तुंगे, गगणतलमलिहंतसिहरा पासादीया । तेसि णं महिंदज्झयाणं उवरिं अट्ठ अट्ठ मंगलया झया छत्तातिछत्ता । १६९– उन मणिपीठिकाओं के ऊपर एक-एक माहेन्द्रध्वज (इन्द्र के ध्वज सदृश अति विशाल ध्वज) फहरा रहा है। वे माहेन्द्रध्वज साठ योजन ऊंचे, आधा कोस जमीन के भीतर ऊंडे—– गहरे, आधा कोस चौड़े, वज्ररत्नों से निर्मित, दीप्तिमान, चिकने, कमनीय, मनोज्ञ वर्तुलाकार— गोल डंडे वाले शेष ध्वजाओं से विशिष्ट, अन्यान्य हजारों छोटी-बड़ी अनेक प्रकार की मनोरम रंग-बिरंगी - पंचरंगी पताकाओं से परिमंडित, वायुवेग से फहराती हुई विजयवैजयन्ती पताका, छत्रातिछत्र से युक्त आकाशमंडल को स्पर्श करने वाले ऐसे ऊंचे उपरिभागों से अलंकृत, मन को प्रसन्न करने वाले हैं। इन माहेन्द्र-ध्वजों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं। १७०—– तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं नंदा पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ । ताओ णं पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छाओ जाव वण्णओ, एगइयाओ उदगरसेणं पण्णत्ताओ । पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ, पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ । तासि णं णंदाणं पुक्खरिणीणं तिदिसिं तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तिसोवाणपडिरूवगाणं वण्णओ, तोरणा, झया, छत्तातिछत्ता । १७० — उन माहेन्द्रध्वजाओं के आगे एक-एक नन्दा नामक पुष्करिणी बनी हुई है। पुष्करणियां सौ योजन लंबी, पचास योजन चौड़ी, दस योजन ऊंडी- गहरी हैं और स्वच्छ-निर्मल हैं आदि वर्णन पूर्ववत् यहां जानना चाहिए। इनमें से कितनेक का पानी स्वाभाविक पानी जैसा मधुर रस वाला है। ये प्रत्येक नन्दा पुष्करणियां एक-एक पद्मवर- वेदिका और वनखंडों से घिरी हुई हैं। इन नन्दा पुष्करणियों की तीन दिशाओं में अतीव मनोहर त्रिसोपान - पंक्तियां हैं। इन त्रिसोपान - पंक्तियों के ऊपर तोरण, ध्वजायें, छत्रातिछत्र सुशोभित हैं आदि वर्णन पूर्ववत् करना चाहिए।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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