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________________ चैत्य वृक्ष १३ विवेचन- 'जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ' अर्थात् ऊंचाई में जिन-भगवान् के शरीर प्रमाण वाली। जिन भगवान् के शरीर की अधिकतम ऊंचाई पांच सौ धनुष और जघन्यतम सात हाथ की बताई है। वर्णन को देखते हुए यहां स्थापित जिन-प्रतिमायें पांच सौ धनुष प्रमाण ऊंची होनी चाहिए, ऐसा टीकाकार का अभिप्राय है। चैत्य वृक्ष १६७– तेसि णं थूभाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ जाव पडिरूवाओ । तासि णं मणिपेढियाणं उवरि पत्तेयं-पत्तेयं चेइयरुक्खे पण्णत्ते, ते णं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाइं उठें उच्चत्तेणं अद्धजोयणं उव्वेहेणं, दो जोयणाई खंधा, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, छ जोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता । तेसि णं चेइयरुक्खाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा वयरामयमूल-रययसुपइट्ठियविडिमा, रिट्ठामयविउलकंदवेरुलियरुइलखंधा, सुजायवरजायरूवफ्ढमगविसालसाला, नाणामणिमयरयणविविहसाहप्पसाह-वेरुलियपत्त-तवणिज्जपत्तबिंटा, जंबूणय-रत्तमउयसुकुमालपवालपल्लववरंकुरधरा, विचित्तमणिरयणसुरभिकुसुमफलभरनमियसाला, सच्छाया, सप्पभा, सस्सिरीया, सउज्जोया, अहियं नयणमणणिव्वुइकरा, अमयरससमरसफला, पासाईया.....। तेसि णं चेइयरुक्खाणं उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता । १६७– उन प्रत्येक स्तूपों के आगे-सामने मणिमयी पीठिकायें बनी हुई हैं। ये मणिपीठिकायें सोलह योजन लम्बी-चौड़ी, आठ योजन मोटी और सर्वात्मना मणिरत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर एक-एक चैत्यवृक्ष है। ये सभी चैत्यवृक्ष ऊंचाई में आठ योजन ऊंचे, जमीन के भीतर आधे योजन गहरे हैं। इनका स्कन्ध भाग दो योजन का और आधा योजन चौड़ा है। स्कन्ध से निकलकर ऊपर की ओर फैली हुई शाखायें छह योजन ऊंची और लम्बाई-चौड़ाई में आठ योजन की हैं। कुल मिलाकर इनका सर्वपरिमाण कुछ अधिक आठ योजन है। इन चैत्य वृक्षों का वर्णन इस प्रकार किया गया है इन वृक्षों के मूल (जड़ें) वज्ररत्नों के हैं, विडिमायें-शाखायें रजत की, कंद रिष्टरत्नों के, मनोरम स्कन्ध वैडूर्यमणि के, मूलभूत प्रथम विशाल शाखायें शोभनीक श्रेष्ठ स्वर्ण की, विविध शाखा-प्रशाखायें नाना प्रकार के मणि-रत्नों की, पत्ते वैडूर्यरत्न के, पत्तों के वृन्त (डंडियां) स्वर्ण के, अरुण-मृदु-सुकोमल-श्रेष्ठ प्रवाल, पल्लव एवं अंकुर जाम्बूनद (स्वर्णविशेष) के हैं और विचित्र मणिरत्नों एवं सुरभिगंध-युक्त पुष्प-फलों के भार से नमित शाखाओं एवं अमृत के समान मधुररस युक्त फल वाले ये वृक्ष सुंदर मनोरम छाया, प्रभा, कांति, शोभा, उद्योत से संपन्न नयन-मन को शांतिदायक एवं प्रासादिक हैं। उन चैत्यवृक्षों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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