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________________ ९२ राजप्रश्नीयसूत्र स्तूप वर्णन १६६ — तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ओ णं मणिपेढियातो सोलस - सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ पडिरूवाओ । तासि णं वरं पत्तेयं - पत्तेयं थूभे पण्णत्ते । ते णं थूभा सोलस - सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाई सोलस- सोलस जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, सेया संखंक (कुंद - दगरय- अमयमहिय- फेणपुंजसंन्निगासातो) सव्वरयणामया अच्छा जाव ( सण्हा -लण्हा - घट्टा-मट्ठा - णीरयानिम्मला- निप्पंका-निक्कंकडच्छाया - सप्पभा- समिरीया - सउज्जोया पासादीया - दरिसणिज्जा अभिरूवा ) पडिरूवा । तेसि णं थूभाणं उवरिं अट्ठट्ठ मंगलगा, झया छत्तातिछत्ता जाव' सहस्सपत्तहत्थया । तेसि णं थूभाणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसिं मणिपेढियातो पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियातो अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणि-मईओ अच्छाओ जाव पडिरूवातो । तासि णं मणिपेढियाणं उवरिं चत्तारि जिणपडिमातो जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ संपलियंनिसन्नाओ, थूभाभिमुहीओ सन्निक्खित्ताओ चिट्ठति, तं जहा—उसभा, वद्धमाणा, चंदाणणा वारिसेणा । १६६ — उन प्रेक्षागृह मंडपों के आगे एक-एक मणिपीठिका है। ये मणिपीठिकायें सोलह-सोलह योजन लम्बी-चौड़ी आठ योजन मोटी हैं। ये सभी सर्वात्मना मणिरत्नमय, स्फटिक मणि के समान निर्मल और प्रतिरूप हैं। उन प्रत्येक मणिपीठों के ऊपर सोलह-सोलह योजन लम्बे-चौड़े समचौरस और ऊंचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे, शंख, अंक रत्न, कुन्दपुष्प, जलकण, मंथन किए हुए अमृत के फेनपुंज सदृश प्रभा वाले, श्वेत, सर्वात्मना रत्नों से बने हुए स्वच्छ यावत् (चिकने, सलौने घुटे हुए, मृष्ट, शुद्ध, निर्मल पंक (कीचड़ ) रहित, आवरण रहित छाया वाले, प्रभा, चमक और उद्योत वाले, मन को प्रसन्न करने वाले, देखने योग्य, मनोहर) असाधारण रमणीय स्तूप बने हैं। उन स्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें छत्रातिछत्र यावत् सहस्रपत्र कमलों के झुमके सुशोभित हो रहे हैं । उन स्तूपों की चारों दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका है। ये प्रत्येक मणिपीठिकायें आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और अनेक प्रकार के मणि रत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं। प्रत्येक मणिपीठिका के ऊपर, जिनका मुख स्तूपों के सामने है ऐसी जिनोत्सेध प्रमाण वाली चार जिनप्रतिमायें पर्यंकासन से विराजमान हैं, यथा-- (१) ऋषभ, (२) वर्धमान, (३) चन्द्रानन, (४) वारिषेण की। देखें सूत्र संख्या २७, २८, २९ १.
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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