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________________ सुधर्मा सभा का वर्णन ९१ १६४- इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । वे इस प्रकार हैं—पूर्व दिशा में एक, दक्षिण दिशा में एक और उत्तर दिशा में एक। वे द्वार ऊंचाई में सोलह योजन ऊंचे, आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेश मार्ग वाले हैं। वे द्वार श्वेत वर्ण के हैं। श्रेष्ठ स्वर्ण से निर्मित शिखरों एवं वनमालाओं से अलंकृत हैं, आदि वर्णन पूर्ववत् यहां करना चाहिए। __ (उन द्वारों के ऊपर स्वस्तिक आदि आठ-आठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र विराजित हैं—शोभायमान हो रहे हैं।) उन द्वारों के आगे सामने एक-एक मुखमंडप हैं। ये मंडप सौ योजन लम्बे, पचास योजन चौड़े और ऊंचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे हैं। सुधर्मा सभा के समान इनका शेष वर्णन कर लेना चाहिए। इन मंडपों की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं, यथा—एक पूर्व दिशा में, एक दक्षिण दिशा में और एक उत्तर दिशा में। ये द्वार ऊंचाई में सोलह योजन ऊंचे हैं, आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेशमार्ग वाले हैं। ये द्वार श्वेत धवलवर्ण और श्रेष्ठ स्वर्ण से बनी शिखरों, वनमालाओं से अलंकृत हैं, पर्यन्त का वर्णन पूर्ववत् यहां करना चाहिए। (उन मंडपों के भूमिभाग, चंदेवा और ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजाओं, छत्रातिछत्र आदि का भी वर्णन करना चाहिए।) उन मुखमंडपों में से प्रत्येक के आगे प्रेक्षागृहमंडप बने हैं। इन मंडपों के द्वार, भूमिभाग, चांदनी आदि का वर्णन मुखमंडपों की वक्तव्यता के समान जानना चाहिए। १६५- तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं वइरामए अक्खाडए पण्णत्ते । ६ तेसि णं वयरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झ-देसभागे पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता, ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव' पडिरूवाओ । तासि णं मणिपेढियाणं उवरि पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणवण्णओ सपरिवारो। - तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं उवरिं अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता । १६५– उन प्रेक्षागृह मंडपों के अतीव रमणीय समचौरस भूमिभाग के मध्यातिमध्य देश में एक-एक वज्ररत्नमय अक्षपाटक-मंच कहा गया है। उन वज्ररत्नमय अक्षपाटकों के भी बीचों-बीच आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और विविध प्रकार के मणिरत्नों से निर्मित यावत् प्रतिरूप असाधारण सुन्दर एक-एक मणिपीठिकायें बनी हुई हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर एक-एक सिंहासन रखा है। भद्रासनों आदि आसनों रूपी परिवार सहित उन सिंहासनों का वर्णन करना चाहिए। ____ उन प्रेक्षागृह मंडपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें, छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं। १. देखें सूत्र संख्या ४७
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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