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________________ राजप्रश्नीयसूत्र भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजाओं, छत्रातिछत्रों आदि का वर्णन भी पूर्ववत् यहां करना चाहिए। ९० विवेचन— प्रस्तुत सूत्र में प्रधान प्रासादावतंसक के आस-पास की चारों दिशाओं सम्बन्धी रचना का किया है। वह प्रधान प्रासाद अपनी आस-पास की रचना के बीचों-बीच है और चारों दिशाओं में बने अन्य चार प्रासादों की अपेक्षा सबसे अधिक ऊंचा और लम्बा-चौड़ा है तथा शेष पार्श्ववर्ती प्रासाद अपने-अपने से पूर्व के प्रासादों की अपेक्षा ऊंचाई और चौड़ाई में उत्तरोत्तर आधे-आधे हैं। अर्थात् मूल प्रासादावतंसक की अपेक्षा उत्तरवर्ती अन्य-अन्य प्रासाद शिखर से लेकर तलहटी तक पर्वत के आकार के समान क्रमशः अर्ध, चतुर्थ और अष्ट भाग प्रमाण ऊंचे और चौड़े हैं। सुधर्मा सभा का वर्णन १६३ –— तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं एत्थ णं सभा सुहम्मा पण्णत्ता, एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाइं विक्खम्भेणं, बावत्तरि जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, अणेगखम्भ.... जाव' अच्छरगण'.... पासादीया । १६३ – उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और बहत्तर योजन ऊंची सुधर्मा नामक सभा है। यह सभा अनेक सैकड़ों खंभों पर सन्निविष्ट यावत् अप्सराओं से व्याप्त अतीव मनोहर है। १६४ - सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता तं जहा — पुरत्थिमेणं दाहिणेणं, उत्तरेणं । ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खम्भेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा जावरे वणमालाओ । तेसिं णं दाराणं उवरिं अट्ठट्ठ मङ्गलगा झया छत्ताइछत्ता । सिणं दाराणं पुरओ पत्तेयं पत्तयं मुहमण्डवे पण्णत्ते, ते णं मुहमण्डवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, साइरेगाई सोलस जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, वण्णओ सभाए सरसो । तेसि णं मुहमण्डवाणं तिदिसिं ततो दारा पण्णत्ता, तं जहा पुरत्थिमेणं, दाहिणेणं, उत्तरेणं । ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथ्रुभियाओ जाव' वणमालाओ । तेसि णं मुहमंडवाणं भूमिभागा, उल्लोया तेसि णं मुहमंडवाणं उवरिं अट्ठट्ठ मङ्गलगा, झया, छत्ताइच्छत्ता । सिणं मुहमंडवाणं पुरतो पत्तेयं - पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते, मुहमंडववत्तव्वया जाव, दारा, भूमिभागा, उल्लोया । १ - २. देखें सूत्र संख्या ४५ ३-४. देखें सूत्र संख्या १२१ से १२९
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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