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________________ - ८९ मुख्य प्रासादावतंसक का वर्णन मुख्य प्रासादावतंसक का वर्णन १६१- तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमझदेसभाए एत्थ णं महेगे मूलपासायवडेंसए पण्णत्ते । से णं मूलपासायवडिंसए पंच जोयणसयाइं उठें उच्चत्तेण, अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय-वण्णओ, भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं, अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता । १६१– इस अतिसम रमणीय भूमिभाग के अतिमध्यदेश में एक विशाल मूल-मुख्य प्रासादावतंसक (उत्तम महल) है। ___ वह प्रासादावतंसक पांच सौ योजन ऊंचा और अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है तथा अपनी फैल रही प्रभा से हंसता हुआ प्रतीत होता है, आदि वर्णन करते हुए उस प्रासाद के भीतर के भूमिभाग, उल्लोक-चंदेवा, परिवार रूप अन्य भद्रासनों आदि से सहित सिंहासन, आठ मंगल, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों का यहां कथन करना चाहिए। १६२– से णं मूलपासायवडेंसगे अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तयद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं सव्वतो समंता संपरिखित्ते, ते णं पासायवडेंसगा अड्डाइज्जाइं जोयणसयाइं उ8 उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं जाव वण्णओ । ते णं पासयवडिंसया अण्णेहिं चउहिं पासायवडिंसएहिं तयद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं सव्वओ समंता संपरिखित्ता । ते णं पासायवडेंसया पणवीसं जोयणसयं उर्दू उच्चत्तेणं बासटुिं जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ, भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवार भाणियव्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता । ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तदधुच्चत्तपमाणमेत्तेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता, ते णं पासायवडेंसगा बासढेि जोयणाई अद्धजोयणं च उर्दू उच्चत्तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, वण्णओ, उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं पासाय० उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता । १६२– वह प्रधान प्रासादावतंसक सभी चारों दिशाओं में ऊंचाई में अपने से आधे ऊंचे अन्य चार प्रासादावतंसकों से परिवेष्टित है। अर्थात् उसकी चारों दिशाओं में और दूसरे प्रासाद बने हुए हैं। ये चारों प्रासादावतंसक ढाई सौ योजन ऊंचे और चौड़ाई में सवा सौ योजन चौड़े हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् यहां करना चाहिए। ये चारों प्रासादावतंसक भी पुनः चारों दिशाओं में अपनी ऊंचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से घिरे हैं। ये प्रासादावतंसक एक सौ पच्चीस योजन ऊंचे और साढ़े बासठ योजन चौड़े हैं तथा ये चारों ओर फैल रही प्रभा से हंसते हुए-से दिखते हैं, यहां से लेकर भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, आठ-आठ मंगल, ध्वजाओं, छत्रातिछत्रों से सुशोभित हैं, पर्यन्त इनका वर्णन करना चाहिए। ___ ये प्रासादावतंसक भी चारों दिशाओं में अपनी ऊंचाई से आधी ऊंचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से परिवेष्टित हैं। ये प्रासादावतंसक साढ़े बासठ योजन ऊंचे और एकतीस योजन एक कोस चौड़े हैं। इन प्रासादों के
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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