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________________ आयुधगृह-शस्त्रागार 010 तस्स णं देवसयणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा—णाणामणिमया पडिपाया, सोवन्निया पाया, णाणामणिमयाइं पायसीसगाई, जंबूणयामयाइं गत्तगाई, वइरामया संधी, णाणामणिमए विच्चे, रययामई तूली, लोहियक्खमया बिब्बोयणा, तवणिज्जमया गंडोवट्टाणया । से णं सयणिज्जे सालिंगणवट्टिए उभओ बिब्बोयणं दुहओ उण्णते, मझे णयगंभीरे गंगापुलिण-वालुया-उद्दालसालिसए, सुविरइयरयत्ताणे, उवचियखोमदुगुल्लपट्ट-पडिच्छायणे आईणगरूय-बूर-णवणीय-तूलफासमउए, रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे पासादीए पडिरूवे ।। __१७५- उस माणवक चैत्यस्तम्भ के पूर्व दिग्भाग में विशाल मणिपीठिका बनी हुई है। जो आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और सर्वात्मना मणिमय निर्मल यावत् प्रतिरूप है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल सिंहासन रखा है। भद्रासन आदि आसनों रूप परिवार सहित उस सिंहासन का वर्णन करना चाहिए। ___ उस माणवक चैत्यस्तम्भ की पश्चिम दिशा में एक बड़ी मणिपीठिका है। वह मणिपीठिका आठ योजन लम्बी चौड़ी, चार योजन मोटी, सर्व मणिमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् असाधारण सुन्दर है। - उस मणिपीठिका के ऊपर एक श्रेष्ठ रमणीय देव-शय्या रखी हुई है। ___उस देवशय्या का वर्णन इस प्रकार है, यथा—इसके प्रतिपाद अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए हैं। स्वर्ण के पद—पाये हैं। पादशीर्षक (पायों के ऊपरी भाग) अनेक प्रकार की मणियों के हैं। गाते (ईषायें, पाटियां) सोने की हैं। सांधे वज्ररत्नों से भरी हुई हैं। बाण (निवार) विविध रत्नमयी है। तूली (बिछौना-गादला) रजतमय है। ओसीसा लोहिताक्षरत्न का है। गंडोपधानिका (तकिया) सोने की है। ___ उस शय्या पर शरीर प्रमाण उपधान—गद्दा बिछा है। उसके शिरोभाग और चरणभाग (सिरहाने और पांयते) दोनों ओर तकिये लगे हैं। वह दोनों ओर से ऊंची और मध्य में नत—झुकी हुई, गम्भीर गहरी है। जैसे गंगा किनारे की बालू में पांव रखने से पांव धंस जाता है, उसी प्रकार बैठते ही नीचे की ओर धंस जाते हैं। उस पर रजस्त्राण पड़ा रहता है—मसहरी लगी हुई है। कसीदा वाला क्षौमदुकूल (रूई का बना चद्दर) बिछा है। उसका स्पर्श आजिनक (मृगछाला, चर्मनिर्मित वस्त्र) रूई, बूर नामक वनस्पति, मक्खन और आक की रूई के समान सुकोमल है। रक्तांशुक लाल तूस से ढका रहता है। अत्यन्त रमणीय, मनमोहक यावत् असाधारण सुन्दर है। आयुधगृह-शस्त्रागार १७६– तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरस्थिमेणं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता—अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोअणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमयी जाव पडिरूवा । तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं महेगे खुड्डए महिंदज्झए पण्णत्ते, सटुिं जोयणाई उठें उच्चत्तेणं, जोयणं विक्खंभेणं वइरामया वट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठ जाव पडिरूवा । उवरि अट्ठ मंगलगा, झया, छत्तातिछत्ता । तस्स णं खुड्डागमहिंदज्झयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स चोप्पाले नाम
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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