________________
८०
राजप्रश्नीयसूत्र
(हंस जैसी आकृति वाले आसन) क्रौंचासन, गरुडासन, उन्नतासन (ऊपर की ओर उठे हुए आसन), प्रणतासन (नीचे की ओर झुके हुए आसन), दीर्घासन (शय्या जैसे लम्बे आसन), भद्रासन, पक्ष्यासन, मकरासन, वृषभासन, सिंहासन, पद्मासन और दिशास्वस्तिक आसन (पक्षी, मगर, वृषभ, सिंह, कमल और स्वस्तिक के चित्रामों से सुशोभित अथवा तदनुरूप आकृति वाले आसन रखे हुए हैं। वनखंडवर्ती गृहों का वर्णन
१४७– तेसु णं वणसंडेसु तत्थ-तत्थ तहि-तहिं देसे देसे बहवे आलियघरगा, मालियघरगा, कयलिघरगा, लयाघरगा, अच्छणघरगा, पिच्छणघरगा, मज्जणघरगा, पसाहणघरगा, गब्भघरगा, मोहणघरगा, सालघरगा, जालघरगा, कुसुमघरगा, चित्तघरगा, गंधव्वघरगा, आयंसघरगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।
१४७– उन वनखंडों में यथायोग्य स्थानों पर बहुत से आलिगृह (वनस्पतिविशेष से बने हुए गृह जैसे मंडप), मालिगृह (वनस्पतिविशेष से बने हुए गृह), कदलीगृह, लतागृह, आसनगृह (विश्राम करने के लिए बैठने योग्य आसनों से युक्त घर), प्रेक्षागृह (प्राकृतिक शोभा के अवलोकन हेतु बने विश्रामगृह अथवा नाट्यगृह), मज्जनगृह (स्नानघर), प्रसाधनगृह (शृंगार-साधनों से सुसज्जित स्थान), गर्भगृह (भीतर का घर), मोहनगृह (रतिक्रीड़ा करने योग्य स्थान), शालागृह, जाली वाले गृह, कुसुमगृह, चित्रगृह (चित्रों से सज्जित स्थान), गंधर्वगृह (संगीतनृत्य शाला), आदर्शगृह (दर्पणों से बने हुए भवन) सुशोभित हो रहे हैं। ये सभी गृह रत्नों से बने हुए अधिकाधिक निर्मल यावत् असाधारण मनोहर हैं।
१४८- तेसु णं आलियघरगेसु जाव' आयंसघरगेसु तहिं तहिं घरएसु हंसासणाई जाव'. दिसासोवत्थिआसणाइं सव्वरयणामयाइं जाव पडिरूवाइं ।
१४८- उन आलिगृहों यावत् आदर्शगृहों में सर्वरत्नमय यावत् अतीव मनोहर हंसासन यावत् दिशा-स्वस्तिक आसन रखे हैं। वनखंडवर्ती मंडपों का वर्णन
१४९– तेसु णं वणसंडेसु तत्थ-तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे जातिमंडवगा, जूहियामंडवगा मल्लियामंडवगा, णवमालियामंडवगा, वासंतिमंडवगा, दहिवासुयमंडवगा, सूरिल्लियमंडवगारे तंबोलिमंडवगा, मुद्दियामंडवगा, णागलयामंडवगा, अतिमुत्तयलयामंडवगा, अप्फोयामंडवगा, मालुयामंडवगा, अच्छा सव्वरयणामया जाव पडिरूवा ।
१४९- उन वनखंडों में विभिन्न स्थानों पर बहुत से जातिमंडप (जाई के कुंज), यूथिकामंडप (जूही की बेल के मंडप), मल्लिकामंडप, नवमल्लिकामंडप, वासंतीमंडप, दधिवासुका (वनस्पतिविशेष) मंडप, सूरिल्लि (सूरजमुखी)
१. २. ३.
देखें सूत्र संख्या १४७ देखें सूत्र संख्या १४६ पाठान्तर-सूरल्लि, सूरमल्लि ।