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________________ उत्पात पर्वतों आदि की शोभा ७९ वइरामया नेमा.... तोरणाणं छत्ताइछत्ता य णेयव्वा । १४४ – उन प्रत्येक वापिकाओं यावत् कूपपंक्तियों की चारों दिशाओं में तीन-तीन सुन्दर सोपान बने हुए हैं। उन त्रिसोपान प्रतिरूपकों का वर्णन इस प्रकार है, जैसे—उनकी नेमें वज्ररत्नों की हैं इत्यादि तोरणों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों पर्यन्त इनका वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। १४५- तासि णं खुड्डाखुड्डियाणं वावीणं जाव बिलपंतियाणं तत्थ-तत्थ तहिं-तहिं बहवे उप्पायपव्वयगा, नियइपव्वयगा, जगईपव्वयगा दारुइज्जपव्वयगा, दगमंडवा, दगमंचगा, दगमालगा, दगपासायगा, उसड्डा खुड्डखुड्डगा अंदोलगा पक्खंदोलगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा । १४५-- उन छोटी-छोटी वापिकाओं यावत् कूपपंक्तियों के मध्यवर्ती प्रदेशों में बहुत से उत्पात पर्वत, नियतिपर्वत, जगतीपर्वत, दारुपर्वत तथा कितने ही ऊंचे-नीचे, छोटे-बड़े दकमंडप, दकमंच, दकमालक, दकप्रासाद बने हुए हैं तथा कहीं-कहीं पर मनुष्यों और पक्षियों को झूलने के लिए झूले हिंडोले पड़े हैं। ये सभी पर्वत आदि सर्वरत्नमय अत्यन्त निर्मल यावत् असाधारण रूप से सम्पन्न हैं। _ विवेचन– सूत्र में वापिकाओं आदि के अन्तरालवर्ती स्थानों में आये हुए जिन पर्वतों आदि का वर्णन किया है, उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है उत्पातपर्वत— ऐसे पर्वत जहां सूर्याभ-विमानवासी देव-देवियां विविध प्रकार की चित्र-विचित्र क्रीड़ाओं के निमित्त अपने-अपने उत्तर वैक्रिय शरीरों की रचना करते हैं। ___नियतिपर्वत– इन पर्वतों पर सूर्याभ-विमानवासी देव-देवियां अपने-अपने भवधारणीय (मूल) वैक्रिय शरीरों से क्रीड़ारत रहते हैं। जगतीपर्वत– इन पर्वतों का आकार कोट-परकोटे जैसा होता है। दारुपर्वत– दारु अर्थात् काष्ठ-लकड़ी। लकड़ी से बने पर्वत जैसे आकार वाले कृत्रिम पर्वत। दकमंडप- स्फटिक मणियों से निर्मित मंडप अथवा ऐसे मंडप जिनमें फव्वारों द्वारा कृत्रिम वर्षा की रिमझिम-रिमझिम फुहारें बरसती रहती हैं। दकमालक— स्फटिक मणियों से बने हुए घर के ऊपरी भाग में बने हुए कमरे—मालिये। उत्पात पर्वतों आदि की शोभा १४६– तेसु णं उप्पाय-पव्वएसु पक्खंदोलएसु बहूई हंसासणाई, कोंचासणाई गरुलासणाई उण्णयासणाई, पणयासणाई, दीहासणाई, भद्दासणाई पक्खासणाई, मगरासणाई उसभासणाइं, सीहासणाइं, पउमासणाई, दिसासोवत्थियाई सव्वरयणामयाइं अच्छाइं जाव पडिरूवाइं । १४६– उन उत्पात पर्वतों, पक्षिहिंडोलों आदि पर सर्वरत्नमय, निर्मल यावत् अतीव मनोहर अनेक हंसासन १. यथाक्रम से इन आसनों की नामबोधक संग्रहणी इस प्रकार है "हंसे कोंचे गरुडे उण्णय पणए य दीह भद्दे य । पक्खे मयरे पउमे सीहे दिसासोत्थि बारसमे ।"
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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