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मणियों और तृणों की ध्वनियाँ
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इन वनखंडों के वृक्ष जमीन के भीतर गहरी फैली हुई जड़ों से युक्त हैं, इत्यादि वृक्षों का समग्र वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार यहां करना चाहिए ।"
विवेचन— औपपातिक सूत्र के अनुसार संक्षेप में वनखंड के वृक्षों का वर्णन इस प्रकार है-—
इन वनखंडों के वृक्ष जमीन के अन्दर विस्तृत गहरे फैले हुए मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रशाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज से युक्त हैं। छतरी के समान इनका रमणीय गोल आकार है। इनके स्कन्ध ऊपर की ओर उठी हुई अनेक शाखा-प्रशाखाओं से शोभित हैं और इतने विशाल एवं वृत्ताकार हैं कि अनेक पुरुष मिलकर भी अपने फैलाये हुए हाथों से उन्हें घेर नहीं पाते। पत्ते इतने घने हैं कि बीच में जरा भी अंतर दिखलाई नहीं देता है। पत्र-पल्लव सदैव नवीन जैसे दिखते हैं। कोपलें अत्यन्त कोमल हैं और सदैव सब ऋतुओं के पुष्पों से व्याप्त हैं तथा नमित, विशेष नमित, पुष्पित, पल्लवित, गुल्मित, गुच्छित, विनमित प्रणमित होकर मंजरी रूप शिरोभूषणों से अलंकृत रहते हैं । तोता, मयूर, मैना, कोयल, नंदीमुख, तीतर, बटेर, चक्रवाल, कलहंस, बतक, सारस आदि अनेक पक्षी-युगलों के मधुर स्वरों से गूंजते रहते हैं। अनेक प्रकार के गुच्छों और गुल्मों से निर्मित मंडप आदि से सुशोभित हैं। नासिका और मन को तृति देने वाली सुगंध से महकते रहते हैं। इस प्रकार ये सभी वृक्ष सुरम्य, प्रासादिक दर्शनीय, अभिरूपमनोहर एवं प्रतिरूप — विशिष्ट शोभासम्पन्न हैं ।
१३७— तेसि णं वणसंडाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पणात्ता, से जहानाम आलिंगपुक्खरेति वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि य तणेहि य उवसोभिया, तेसि णं गंधो फासो णेयव्वो जहक्कमं ।
१३७– उन वनखंडों के मध्य में अति सम रमणीय भूमिभाग (मैदान) हैं। वे मैदान आलिंग पुष्कर आदि के सदृश समतल यावत् नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पंचरंगे मणियों और तृणों से उपशोभित हैं। इन मणियों के गंध और स्पर्श यथाक्रम से पूर्व में किये गये मणियों के गंध और स्पर्श के वर्णन के समान जानना चाहिए।
मणियों और तृणों की ध्वनियाँ
१३८— प्र—तेसि णं भंते ! तणाण य मणीण य पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वातेहिं मंदायं मंदायं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं चालियाणं फंदियाणं घट्टियाणं खोभियाणं उदीरिदाणं केरिस सद्दे भवति ?
१३८ – हे भदन्त ! पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशा से आए वायु के स्पर्श से मंद-मंद हिलने-डुलने, कंपने, डगमगाने, फरकने, टकराने क्षुभित विचलित और उदीरित—प्रेरित होने पर उन तृणों और मणियों की कैसी शब्द- ध्वनि होती है ?
१३९ – उ०—हे गोयमा ! से जहानामए सीयाए वा, संदमाणीए वा, रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स, सघंटस्स, सपडागस्स, सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स, सखिंखिणिहेमजालपरिक्खित्तस्स,
१.
एक जाति वाले श्रेष्ठ वृक्षों के समूह को वन और भिन्न-भिन्न जाति वाले वृक्षों के समुदाय को वनखंड कहते हैं— एक जाईएहिं रुक्खेहिं वणं अणेगजाईएहिं उत्तमेहिं रुक्खेहिं वणसण्डे (जीवाभिगम चूर्णि ) ।