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________________ ७४ राजप्रश्नीयसूत्र वर्णन समझना चाहिए, अर्थात् उसके परिवार रूप सामानिक आदि देवों के भद्रासनों सहित इन सिंहासनों का वर्णन जानना चाहिए। शेष आसपास के भौमों में भद्रासन रखे हैं। १३५- तेसि णं दाराणं उत्तमागारा' सोलसविहेहिं रयणेहिं उवसोभिया, तं जहा— रयणेहिं जाव रिटेहिं । तेसि णं दाराणं उप्पिं अट्ठट्ठमंगलगा सज्झया जाव छत्तातिछत्ता । एवमेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाणे चत्तारि दारसहस्सा भवंतीति मक्खायं । १३५– उन द्वारों के ओतरंग (ऊपरी भाग) सोलह प्रकार के रत्नों से उपशोभित हैं। उन रत्नों के नाम इस प्रकार हैं-कर्केतनरत्न यावत् (वज्र, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, ज्योतिरस, अंक, अंजन, रजत, अंजनपुलक, जातरूप, स्फटिक), रिष्टरत्न। उन द्वारों के ऊपर ध्वजाओं यावत् छत्रातिछत्रों से शोभित स्वस्तिक आदि आठ-आठ मंगल हैं। इस प्रकार सूर्याभ विमान में सब मिलकर चार हजार द्वार सुशोभित हो रहे हैं। विमान के वनखण्डों का वर्णन १३६– सूरियाभस्स विमाणस्स चउद्दिसिं पंच जोयणसयाई अबाहाए चत्तारि वणसंडा पन्नत्ता, तं जहा–असोगवणे, सत्तवण्णवणे, चंपगवणे, चूयगवणे । पुरथिमेणं असोगवणे, दाहिणेणं सत्तवनवणे, पच्चत्थिमेणं चंपगवणे, उत्तरेणं चूयगवणे । - ते णं वणखंडा साइरेगाइं अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, पत्तेयं पत्तेयं पागारपरिखित्ता, किण्हा किण्होभासा, नीला नीलोभासा, हरिया हरियोभासा, सीया सीयोभासा, निद्धा निद्धोभासा, तिव्वा तिव्वोभासा, किण्हा किण्हच्छाया, नीला नीलच्छाया, हरिया हरियच्छाया, सीया सीयच्छाया, निद्धा निद्धच्छाया, घणकडितडियच्छाया, रम्मा महामेहनिकुरुंबभूया । ....ते णं पायवा मूलमंतो वणखंडवन्नओ । १३६- उन सूर्याभविमान के चारों ओर पांच सौ-पांच सौ योजन के अन्तर पर चार दिशाओं में १. अशोकवन, २. सप्तपर्णवन, ३. चंपकवन और ४. आम्रवन नामक चार वनखंड हैं। पूर्व दिशा में अशोकवन, दक्षिण दिशा में सप्तपर्ण वन, पश्चिम में चंपक वन और उत्तर में आम्रवन है। ये प्रत्येक वनखंड साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक लम्बे और पांच सौ योजन चौड़े हैं। प्रत्येक वनखंड एक-एक परकोटे से परिवेष्टित—घिरा है। ये सभी वनखंड अत्यन्त घने होने के कारण काले और काली आभा वाले, नीले और नीली आभा वाले, हरे और हरी कांति वाले, शीत स्पर्श और शीत आभा वाले, स्निग्ध कमनीय और कमनीय कांति दीप्ति—प्रभा वाले, तीव्र प्रभा वाले तथा काले और काली छाया वाले, नीले और नीली छाया वाले, हरे और हरी छाया वाले, शीतल और शीतल छाया वाले, स्निग्ध और स्निग्ध छाया वाले हैं एवं वृक्षों की शाखा-प्रशाखायें आपस में एक दूसरी से मिली होने के कारण अपनी सघन छाया से बड़े ही रमणीय तथा महा मेघों के समुदाय जैसे सुहावने दिखते हैं। १. पाठान्तर—उवरिमागारा ।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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