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________________ ६७ द्वारस्थित पुतलियां प्रकाश पुंज की तरह उद्योत वाली—चमकीली विद्युत् (मेघ की बिजली) की चमक एवं सूर्य के देदीप्यमान तेज से भी अधिक प्रकाश-प्रभावाली, अपनी सुन्दर वेशभूषा से शृंगार रस के गृह-जैसी और मन को प्रसन्न करने वाली यावत् अतीव (दर्शनीय, मनोहर अतीव रमणीय) हैं। १२७ – तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस जालकडगपरिवाडीओ पन्नत्ता, ते णं जालकडगा सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा । १२७– इन द्वारों को दोनों बाजुओं की दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह जालकटक (जाली-झरोखों से बने प्रदेश) हैं, ये प्रदेश सर्वरत्नमय, निर्मल यावत् अत्यन्त रमणीय हैं। १२८ -- तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस सोलस घंटापरिवाडीओ पन्नत्ता, तासि णं घंटाणं इमेयारूवे वन्नावासे पन्नत्ते, तं जहा___जंबूणयामईओ घंटाओ, वयरामयाओ लालाओ, णाणामणिमया घंटापासा, तवणिज्जामइयाओ संखलाओ, रययामयाओ रज्जूओ । ___ ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ, मेहस्सराओ, हंसस्सराओ, कुंचस्सराओ, सीहस्सराओ, दुंदुहिस्सराओ, णंदिघोसाओ, मंजुस्सराओ, मंजुघोसाओ, सुस्सराओ, सुस्सरघोसाओ उरालेणं मणुन्नेणं मणहरेणं कन्नमणनिव्वुइकरेणं सद्देणं ते पदेसे सव्वओ समंता आपूरेमाणाओ आपूरेमाणाओ जाव (सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा) चिटुंति । १२८– इन द्वारों की उभय पार्श्ववर्ती दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह घंटाओं की पंक्तियां कही गई हैं। उन घंटाओं का वर्णन इस प्रकार है—वे प्रत्येक घंटे जाम्बूनद स्वर्ण से बने हुए हैं, उनके लोलक वज्ररत्नमय हैं, भीतर और बाहर दोनों बाजुओं में विविध प्रकार के मणि जड़े हैं, लटकाने के लिए बंधी हुई सांकलें सोने की और रस्सियां (डोरियां) चांदी की हैं। मेघ की गड़गड़ाहट, हंसस्वर, क्रौंचस्वर, सिंहगर्जना, दुन्दुभिनाद, वाद्यसमूहनिनाद, नन्दिघोष, मंजुस्वर, मंजुघोष, सुस्वर, सुस्वरघोष जैसी ध्वनिवाले वे घंटे अपनी श्रेष्ठ—सुन्दर मनोज्ञ, मनोहर कर्ण और मन को प्रिय, सुखकारी झनकारों से उस प्रदेश को चारों ओर से व्याप्त करते हुए अतीव अतीव शोभायमान हो रहे हैं। १२९– तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस वणमालापरिवाडीओ पन्नत्ताओ, ताओ णं वणमालाओ णाणामणिमयदुमलयकिसलयपल्लवसमाउलाओ छप्पयपरिभुज्जमाणसोहंत सस्सिरीयाओ पासाईयाओ, दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ परिरूवाओ । १२९– उन द्वारों की दोनों बाजुओं की दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह वनमालाओं की परिपाटियांपंक्तियां कही हैं। __ ये वनमालायें अनेक प्रकार की मणियों से निर्मित द्रुमों वृक्षों, पौधों, लताओं, किसलयों (नवीन कोपलों) और पल्लवों—पत्तों से व्याप्त हैं। मधुपान के लिए बारम्बार षटपदों भ्रमरों के द्वारा स्पर्श किए जाने से सुशोभित ये १. देखें सूत्र संख्या ११८
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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