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सूर्याभदेव के विमान का अस्वथान और वर्णन
प्रचण्ड आंधी को आता हुआ देखे तो जैसे वह उस कूटाकार शाला के अंदर प्रविष्ट हो जाता है, उसी प्रकार हे गौतम! सूर्याभदेव की वह सब दिव्य देवऋद्धि आदि उसके शरीर में प्रविष्ट हो गई—अन्तर्लीन हो गई है, ऐसा मैंने कहा है। सूर्याभदेव के विमान का अवस्थान और वर्णन
११७– कहि णं भंते ! सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे नामं विमाणे पन्नत्ते ? ११७– हे भगवन् ! उस सूर्याभदेव का सूर्याभ नामक विमान कहां पर कहा गया है ?
११८ – गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उ8 चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोअणसयाई एवं-सहस्साई-सयसहस्साइं, बहुईओ जोअणकोडीओ, जोअणसयकोडीओ, जोअणसहस्सकोडीओ, बहुईओ जोअणसयसहस्सकोडीओ बहुईओ जोअण-कोडाकोडीओ उर्दू दूरं वीतीवइत्ता एत्थ णं सोहम्मे नामं कप्पे पन्नत्ते-पाईणपडीणायते उदीणदाहिण-वित्थिण्णे, अद्धचंदसंठाणसंठिते, अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे, असंखेज्जाओ जोअणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं, असंखेज्जाओ जोअणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, एत्थ णं सोहम्माणं देवाणं बत्तीसं विमाणावासयसहस्साई भवंति इति, मक्खायं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव (सण्हा लण्हा, घट्टा मट्ठा, णीरया निम्मला, निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासादीया, दरिसणिज्जा अभिरूवा) पडिरूवा । तेसिं णं विमाणाणं बहुमज्झदेसभाए पंच वडिंसया पन्नत्ता, तं जहा—असोगवडिंसएं सत्तवण्णवडिंसए चंपगवडिंसए' चूतवडिंसए मज्झे सोधम्मवडिंसए । ते णं वडिंसगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।
तस्स णं सोधम्मवडिंसगस्स महाविमाणस्स पुरत्थिमेणं तिरियं असंखेन्जाइं जोयणसयसहस्साई वीइवइत्ता एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे विमाणे पण्णत्ते, अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं', अउणयालीसं च सयसहस्साई बावन्नं च सहस्साइं अट्ठ य अडयाल जोयणसते परिक्खेवेणं ।
११८ – हे गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर (सुमेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के रमणीय समतल भूभाग से ऊपर ऊर्ध्वदिशा में चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण नक्षत्र और तारामण्डल से आगे भी ऊंचाई में बहुत से सैकड़ों योजनों, हजारों योजनों, लाखों, करोड़ों योजनों और सैकड़ों करोड़, हजारों करोड़, लाखों करोड़ योजनों, करोड़ों करोड़ योजन को पार करने के बाद प्राप्त स्थान पर सौधर्मकल्प नाम का कल्प है—अर्थात् सौधर्म नामक स्वर्गलोक है।
यह सौधर्मकल्प पूर्व-पश्चिम लम्बा और उत्तर-दक्षिण विस्तृत—चौड़ा है, अर्धचन्द्र के समान उसका आकार
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पाठान्तर—भूतवडेंसए, भूयगवडिंसते । पाठान्तर–अतो तेरसय सहस्साइं आयामविक्खंभेणं बायालीसं च सयसहस्साई अट्ठ य अड० । अउणयालीसं च सयसहस्साइं अट्ठ य अडयालजोयणसते ।