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________________ औपपातिकसूत्र इस तपस्या में १+२+३+४+५+६+७+४+५+६+७+१+२+३+७+१+२+३+४+५+६+३+४+५+६+७+१+२ +६+७+१+२+३+४+५+२+३+४+५+६+७+१+५+६+७+१+२+३+४ = तप दिन १९६ + पारणा दिन ४९ = कुल दिन २४५ = आठ महीने तथा पाँच महीने लगते हैं। इसकी चारों परिपाटियों में २४५+२४५+२४५+२४५ = ९८० दिन = दो वर्ष आठ महीने तथा बीस दिन लगते आयम्बिल वर्द्धमान अन्तकृद्दशांग सूत्र के अष्टम वर्ग के दशवें अध्ययन में आर्या महासेनकृष्णा द्वारा आयम्बिल वर्द्धमान तप किये जाने का वर्णन है। इस तप में आयम्बिल (जिसमें एक दिन में एक बार भूना हुआ या पकाया हुआ एक अन्न पानी के साथपानी में भिगोकर खाया जाए) के साथ उपवास का एक विशेष क्रम रहता है। आयम्बिलों की क्रमशः बढ़ती-हुई संख्या के साथ उपवास चलता रहता है। एक आयम्बिल, एक उपवास, दो आयम्बिल, एक उपवासं, तीन छ8 अट्ठमं अट्ठमं दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे।। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। एक्काए कालो अट्ठ मासा पंच य दिवसा। चउण्हं दो वासा अट्ठ मासा वीस य दिवसा। सेसं तहेव जाव सिद्धा। -अन्तकृद्दशासूत्र, पृष्ठ १६७ एवं महासेणकण्हा वि, नवरं-आयंबिल-वड्डमाणं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरइ, तं जहाआयंबिलं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ । वे आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ । तिण्णि आयंबिलाई करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ । चत्तारि आयंबिलाई करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ । पंच आयंबिलाई करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ । छ आयंबिलाई करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ । एवं एक्कुत्तरियाए वड्डीए आयंबिलाई वटुंति चउत्तरियाई जाव आयंबिलसयं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्माणं तवोकम्मं चोहसहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहि 'अहासुत्तं जाव आराहेत्ता' जेणेव अजचंदणा अज्जा, तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मास-द्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। -अन्तकृद्दशासूत्र, पृष्ठ १७५
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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