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________________ कूणिक द्वारा भगवान् का परोक्ष वन्दन एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते, चोक्खे, परमसुइभूए, अंजलिमउलियहत्थे, तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, वामं जाणुं अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहट्टु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडगतुडियथंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयल जाव ( — परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं ) कट्टु एवं वयासी— २१ १९ - भंभसार का पुत्र राजा कूणिक वार्तानिवेदक से यह सुनकर, उसे हृदयंगम कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ । उत्तम कमल के समान उसका मुख तथा नेत्र खिल उठे। हर्षातिरेकजनित संस्फूर्तिवश राजा के हाथों के उत्तम कड़े, बाहुरक्षिका — भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखने वाली आभरणात्मक पट्टी, केयूर — भुजबन्ध, मुकुट, कुण्डल तथा वक्षःस्थल पर शोभित हार सहसा कम्पित हो उठे हिल उठे। राजा के गले में लम्बी माला लटक रही थी, आभूषण झूल रहे थे । राजा आदरपूर्वक शीघ्र सिंहासन से उठा । (सिंहासन से) उठकर, पादपीठ (पैर रखने के पीढ़े) पर पैर रखकर नीचे उतरा। नीचे उतर कर पादुकाएँ उतारीं । फिर खड्ग, छत्र, मुकुट, वाहन, चंवर—इन पांच राजचिह्नों को अलग किया। जल से आचमन किया, स्वच्छ तथा परम शुचिभूत अति स्वच्छ व शुद्ध हुआ। कमल की फली की तरह हाथों को संपुटित किया— हाथ जोड़े। जिस ओर तीर्थंकर भगवान् महावीर विराजित थे, उस ओर सात, आठ कदम सामने गया। वैसा कर अपने बायें घुटने को आकुंचित —— संकुचित किया— सिकोड़ा, दाहिने घुटने को भूमि पर टिकाया, तीन बार अपना मस्तक जमीन से लगाया। फिर वह कुछ ऊपर उठा, कंकण तथा बाहुरक्षिका से सुस्थिर भुजाओं को उठाया, हाथ जोड़े, अंजलि (जुड़े हुए हाथों) को मस्तक के चारों ओर घुमाकर बोला कूणिक द्वारा भगवान् का परोक्ष वन्दन २० - णमोऽत्थु णं अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थगराणं, सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं, लोगहियाणं लोगपईवाणं, लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, दीवो, ताणं, सरणं, गई, पट्ठा, अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं, वियट्टछउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिण्णाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोयगाणं, सव्वण्णूणं, सव्वदरिसीणं, सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं, सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स, आदिगरस्स, तित्थगरस्स जाव' संपाविउकामस्स, मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरगए, पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अट्ठत्तरं सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता, सम्माणित्ता एवं वयासी— इस सूत्र में आये भगवान् के सभी विशेषण षष्ठी एकवचनान्त होकर यहाँ लगेंगे। १.
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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