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________________ १४ औपपातिकसूत्र सामर्थ्य में सर्पतुल्य था। वह पुरुषों में उत्तम पुण्डरीक सुखार्थी, सेवाशील जनों के लिए श्वेत कमल जैसा सुकुमार था। वह पुरुषों में गन्धहस्ती के समान था—अपने विरोधी राजा रूपी हाथियों का मान-भंजक था। वह समृद्ध, दृप्त—दर्प या प्रभावयुक्त तथा वित्त या वृत्त—सुप्रसिद्ध था। उसके यहाँ बड़े-बड़े विशाल भवन, सोने-बैठने के आसन तथा रथ, घोड़े आदि सवारियाँ, वाहन बड़ी मात्रा में थे। उसके पास विपुल सम्पत्ति, सोना तथा चाँदी थी। वह आयोग-प्रयोग–अर्थ लाभ के उपायों का प्रयोक्ता था—धनवृद्धि के सन्दर्भ में वह अनेक प्रकार से प्रयत्नशील रहता था। उसके यहाँ भोजन कर लिये जाने के बाद बहुत खाद्य-सामग्री बच जाती थी। (जो तदपेक्षी जनों में बाँट दी जाती थी।) उसके यहाँ अनेक दासियाँ, दास, गायें, भैंसें तथा भेड़ें थीं। उसके यहाँ यन्त्र, कोष खजाना, कोष्ठागार अन्न आदि वस्तुओं का भण्डार तथा शस्त्रागार प्रतिपूर्ण अति समृद्ध था। उसके पास प्रभूत सेना थी। उसने अपने राज्य के सीमावर्ती राजाओं या पड़ोसी राजाओं को शक्तिहीन बना दिया था। उसने अपने सगोत्र प्रतिस्पर्धियों -प्रतिस्पर्धा व विरोध रखने वालों को विनष्ट कर दिया था। उनका धन छीन लिया था, उनका मान भंग कर दिया था तथा उन्हें देश से निर्वासित कर दिया था। यों उसका कोई भी सगोत्र विरोधी बच नहीं पाया था। उसी प्रकार उसने अपने (गोत्रभिन्न) शत्रुओं को विनष्ट कर दिया था, उनकी सम्पत्ति छीन ली थी, उनका मान भंग कर दिया था और उन्हें देश से निर्वासित कर दिया था। अपने प्रभावातिशय से उसने उन्हें जीत लिया था, पराजित कर दिया था। __ इस प्रकार वह राजा दुर्भिक्ष तथा महामारी के भय से रहित-निरुपद्रव, क्षेममय, कल्याणमय सुभिक्षयुक्त एवं शत्रुकृत विघ्नरहित राज्य का शासन करता था। राजमहिषी धारिणी १२- तस्स णं कोणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था-सुकुमालपाणिपाया, अहीणपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा, लक्खण-वंजण-गुणोववेया, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्ण-सुजायसव्वंगसुंदरंगी, ससिसोमाकारकंतपियदंसणा, सुरूवा, करयलपरिमियपसत्थतिवलीवलियमज्झा, कुंडलुल्लिहियगंडलेहा, कोमुइयरयणियरविमलपडिपुण्णसोमवयणा, सिंगारागारचारुवेसा, संगयगय-हसिय-भणिय-विहियविलास-सललियसंलाव-णिउणजुत्तोवयारकुसला, पासादीया, दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा कोणिएणं रण्णा भंभसारपुत्तेण सद्धिं अणुरत्ता, अविरत्ता इढे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ। ___राजा कूणिक की रानी का नाम धारिणी था। उसके हाथ-पैर सुकोमल थे। उसके शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ अहीन-प्रतिपूर्ण रचना की दृष्टि से अखण्डित, सम्पूर्ण, अपने अपने विषयों में सक्षम थीं। वह उत्तम लक्षणसौभाग्यसूचक हाथ की रेखाओं आदि, व्यंजन –उत्कर्षसूचक, तिल, मस आदि चिह्न तथा गुण-शील, सदाचार, पातिव्रत्य आदि से युक्त थी। दैहिक फैलाव, वजन, ऊँचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरी थी। उसका आकार-स्वरूप चन्द्र के समान सौम्य तथा दर्शन कमनीय था। वह परम रूपवती थी। उसकी देह का मध्य भाग कमर हथेली के विस्तार जितनी या मुट्ठी द्वारा गृहीत की जा सके, इतना सा विस्तार लिये थी—बहुत पतली थी, पेट पर पड़ने वाली प्रशस्त –उत्तम तीन रेखाओं से युक्त थी। उसके कपोलों की रेखाएँ कुण्डलों से उद्दीप्त—सुशोभित थीं। उसका मुख शरत्पूर्णिमा के चन्द्र के सदृश निर्मल, परिपूर्ण तथा सौम्य था। उसकी सुन्दर
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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