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________________ औपपातिकसूत्र था, जो वहाँ नर्तकों, कलाबाजों, पहलवानों, मसखरों, कथा कहनेवालों, वाद्य बजाने वालों, मागधों—यशोगायकों आदि की अवस्थिति में प्रकट होता है। वनखण्ड ३- से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वणसंडेणं सव्वओ समंता परिक्खित्ते। से णं वणसंडे किण्हे, किण्होभासे, नीले, नीलोभासे, हरिए, हरिओभासे, सीए, सीओभासे, णिद्धे, णिद्धोभासे, तिव्वे, तिव्वोभासे, किण्हे, किण्हच्छाए, नीले, नीलच्छाए, हरिए, हरियच्छाए, सीए, सीयच्छाए, णिद्धे, णिद्धच्छाए, तिव्वे, तिव्वच्छाए, घणकडिअकडिच्छाए, रम्मे, महामेहणिकुरंबभूए। ३- वह पूर्वभद्र चैत्य सब ओर से चारों ओर से एक विशाल वन-खण्ड से घिरा हुआ था। सघनता के कारण वह वन-खण्ड काला, काली आभावाला, (मोर की गर्दन जैसा) नीला, नीली आभावाला तथा (तोते की पूंछ जैसा) हरा, हरी आभावाला था। लताओं, पौधों व वृक्षों की प्रचुरता के कारण वह (वन-खण्ड) स्पर्श में शीतल, शीतल आभामय, स्निग्ध-चिकना, रूक्षतारहित, स्निग्ध आभामय, तीक्र—सुन्दर वर्ण आदि उत्कृष्ट गुणयुक्त तथा तीव्र आभामय था। यों वह वन-खण्ड कालापन, काली छाया, नीलापन, नीली छाया, हरापन, हरी छाया, शीतलता, शीतल छाया, स्निग्धता, स्निग्ध छाया, तीव्रता तथा तीव्र छाया लिये हुए था। वृक्षों की शाखाओं के परस्पर गुंथ जाने के कारण वह गहरी, सघन छाया से युक्त था। उसका दृश्य ऐसा रमणीय था, मानो बड़े-बड़े बादलों की घटाएँ घिरी हों। पादप ४- ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो, खंधमंतो, तयामंतो, सालमंतो, पवालमंतो, पत्तमंतो, पुष्फमंतो, फलमंतो, बीयमंतो, अणुपुव्वसुजाय-रुइल-वभावपरिणया, एक्कखंधा, अणेगसाला, अणेगसाहप्पसाहविडिमा, अणेगनरवामसुप्पसारियअग्गेज्झ घणविउलबद्धखंधा, अच्छिद्दपत्ता, अविरलपत्ता, अवाईणपत्ता, अणईपत्ता, निळ्यजरढपंडुपत्ता, णवहरियभिसंतपत्तभारंधयारगंभीरदरिसणिजा, उवणिग्गयणवतरुणपत्त-पल्लव-कोमल-उज्जलचलंतकिसलय-सुकुमालपवालसोहियवरंकुरग्गसिहरा, णिच्चं कुसुमिया, णिच्चं माइया, णिच्चं लवइया, णिच्चं थवइया, णिच्चं गुलइया, णिच्चं गोच्छिया, णिच्चं जमलिया, णिचं जुवलिया, णिच्चं विणमिया, णिच्चं पणमिया, णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइयथवइय-गुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुवलिय-विणमिय-पणमिय-सुविभत्तपिंडमंजरिवडिंसयधरा, सुय-बरहिण-मयणसाल-कोइल-कोभगक-भिंगारग-कोंडलग-जीवंजीवग-गंदीमुह-कविलपिंगलक्खग-कारंडचक्क-वाय-कलहंस-अणेगसउणगणमिहुणविरइयसढुण्णइयमहुरसरणाइए, सुरम्मे, संपिंडियदरिय भमरमहुयरिपहकरपरिलिंत-मत्तछप्पय-कुसुमासवलोलमहुर-गुमगुमंतगुंजंतदेसभाए, अभितरपुष्पफले, बाहिरपत्तोच्छण्णे, पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छन्नपडिवलिच्छण्णे साउफले, निरोयए, अकंटए, णाणाविहगुच्छ-गुम्म-मंडवग-रम्मसोहिए, विचित्तसुहकेउभूए, वावी-पुक्खरिणी-दीहियासु य सुनिवेसियरमजालहरए पिंडिमणीहारिमं सुगंधिं सुहसुरभिमणहरं च महया गंधद्धणिं मुयंता, णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगघरगसुहसेउकेउबहुला, अणेगरहजाणजुग्गसिवियपविमोयणा, सुरम्मा, पासादीया, दरिसणिजा
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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