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________________ २२. उत्तरकूलंग— गंगा के उत्तर तट पर रहने वाले । २३. संखधमक शंख बजाकर भोजन करने वाले। वे शंख इसलिए बजाते थे कि अन्य व्यक्ति भोजन करते समय न आयें। २४. कूलधमक -किनारे पर खड़े होकर उच्च स्वर करते हुए भोजन करने वाले । २५. मियलुद्धक— पशु-पक्षियों का शिकार कर भोजन करने वाले । २६. हत्थीतावस — जो हाथी मारकर बहुत समय तक उसका भक्षण करते थे। इन तपस्वियों का यह अभिमत था एक हाथी को एक वर्ष या छह महीने में मार कर हम केवल एक ही जीव का वध करते हैं, अन्य जीवों को मारने के पाप से बच जाते हैं। टीकाकार के अभिमतानुसार हस्तीतापस बौद्ध भिक्षु थे ।५ ललितविस्तर में हस्तीव्रत तापसों का उल्लेख है। १६* महावग्ग में भी दुर्भिक्ष के समय हाथी आदि के मांस खाने का उल्लेख मिलता है।९६ * २७. उड्डडंक — दण्ड को ऊपर उठाकर चलने वाले । आचारांग चूर्णि" में उड्डडंक, बोडिय और सरक्ख आदि साधुओं के साथ उनकी परिगणना की है। ये साधु केवल शरीर मात्र परिग्रही थे । पाणिपुट में ही भोजन किया करते थे । २८. दिसापोक्खी— जल से दिशाओं का सिंचन कर पुष्प फल आदि बटोरने वाले। भगवती सूत्र" में हस्तिनापुर के शिवराजर्षि का उपाख्यान । उन्होंने दिशा-प्रोक्षक तपस्वियों के निकट दीक्षा ग्रहण की थी। वाराणसी का सोमिल ब्राह्मण तपस्वी भी चार दिशाओं का अर्चक था ।" आवश्यकचूर्णि के अनुसार राजा प्रसन्नचन्द्र अपनी महारानी के साथ दिशा - प्रोक्षकों के धर्म में दीक्षित हुआ था। वसुदेवहिंडी" और दीघनिकाय १०२ में भी दिसापोक्खी तापसों का वर्णन है । २९. वक्कवासी- - वल्कल के वस्त्र पहनने वाले । ३०. अम्बुवासी— जल में रहने वाले । ३१. बिलवासी— बिलों में रहने वाले । ३२. जलवासी— जल में निमग्न होकर बैठने वाले । ३३. वेलवासी समुद्र के किनारे रहने वाले । ३४. रुक्खमूलिया — वृक्षों के नीचे रहने वाले । ३५. अम्बुभक्खी— जल भक्षण करने वाले । ३६. वाउभक्खी—— वायु पीकर रहने वाले । रामायण १०३ में मण्डकरनी नामक तापस का उल्लेख है, जो केवल वायु पर जीवित रहता था। महाभारत में भी वायुभक्षी तापसों के उल्लेख मिलते हैं । ९५. सूत्रकृतांग टीका, २/६ ९६. * ललितविस्तर, पृ. २४८ ९६. * महावग्ग - ६/१०/२२, पृ. २३५ ९७. आचारांग चूर्णि - ५, पृ. १६९ ९८. भगवती सूत्र ११ / ९ ९९. निरयावलिका-३, पृ. ३७-४० १००. आवश्यकचूर्णि, पृ. ४५७ १०१. वसुदेवहिंडी, पृ. १७ १०२. दीघनिकाय, सिगालोववादसुत्त १०३. रामायण - ३-११/१२ १०४. महाभारत, १/९६/४२ [२९]
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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