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________________ केवलि-समुद्घात सोलससहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलियं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते। १३५–गौतम! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सभी द्वीपों तथा समुद्रों के बिलकुल बीच में स्थित है। यह आकार में सबसे छोटा है, गोल है। तैल में पके हुए पूए के समान गोल है। रथ के पहिये के आकार के सदृश गोल है। कमल-कर्णिका कमल के बीज-कोष की तरह गोल है। पूर्ण चन्द्रमा के आकार के समान गोलाकार है। एक लाख योजन प्रमाण लम्बा-चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष तथा साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक बतलाई गई है। १३६- देवे णं महिड्डीए, महजुतीए, महब्बले, महाजसे, महासुक्खे, महाणुभावे, सविलेवणं गंधसमुग्गयं गिण्हइ, गिहित्ता तं अवदालेइ, अवदालित्ता जाव इणामेव त्ति कटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छराणिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टिता णं हव्वमागच्छेजा। १३६ एक अत्यधिक ऋद्धिमान्, द्युतिमान्, अत्यन्त बलवान्, महायशस्वी, परम सुखी, बहुत प्रभावशाली देव चन्दन, केसर आदि विलेपनोचित सुगन्धित द्रव्य से परिपूर्ण डिब्बा लेता है, लेकर उसे खोलता है, खोलकर उस सुगन्धित द्रव्य को सर्वत्र बिखेरता हुआ तीन चुटकी बजाने जितने समय में समस्त जम्बूद्वीप की इक्कीस परिक्रमाएँ कर तुरन्त आ जाता है। १३७- से.णूणं गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे तेहिं घाणपोग्गलेहिं फुडे ? हंता फुडे। १३७– क्या समस्त जम्बूद्वीप उन घ्राण-पुद्गलों-गन्ध-परमाणुओं से स्पृष्ट—व्याप्त होता है ? हाँ, भगवन् ! होता है। १३८ - छउमत्थे णं गोयमा ! मणुस्से तेसिं घाणपोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं जाव' जाणइ, पासइ ? भगवं! णो इणढे समढे। १३८- गौतम! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन घ्राण-पुद्गलों को वर्ण रूप से वर्ण आदि को जरा भी जान पाता है ? देख पाता है ? भगवन्! ऐसा संभव नहीं है। १३९- से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मणुस्से तेसिं णिजरापोग्गलाणं णो किंचि वण्णेणं वण्णं जाव' जाणइ, पासइ। १. 'जाव इणामेवेत्तिकटु' त्ति यावदिति परिमाणार्थस्तावदित्यस्य गम्यमानस्य सव्यपेक्षः, 'इणामेव त्ति इदं गमनम् एवमिति चप्पुटिकारूपशीघ्रत्वावेदकहस्तव्यापारोपदर्शनपरः, अनुस्वाराश्रयणं च प्राकृतत्वात, द्विर्वचनं च शीघ्रतातिशयोपदर्शनपरम्, इति रूपप्रदर्शनार्थः । –औपपातिकसूत्र वृत्ति, पत्र १०९ २. देखें सूत्र संख्या १३३ ३. देखें सूत्र संख्या १३३
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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