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औपपातिकसूत्र
बाह्य शुद्धिमूलक क्रम एक ऐसा ही रूप था, जिसका सामीप्य वैदिक धर्म से है । अनशनमय घोर तप, भिक्षा-विधि, अदत्त का ग्रहण आदि कुछ ऐसी स्थितियाँ थीं जो जैन साधनापद्धति के सन्निकट हैं। इन साधकों में कतिपय ऐसे भी थे, जो अन्ततः जैन श्रद्धा स्वीकार कर लेते थे, जैसा अम्बड़ परिव्राजक के शिष्यों ने किया ।
आचार्य हरिभद्रसूरि रचित 'समराइच्च-कहा' आदि उत्तरवर्ती ग्रन्थों में भी तापस साधकों तथा परिव्राजकों की चर्चाएँ आई हैं। लगता है, साधना के क्षेत्र में एक ऐसी समन्वय-प्रधान पद्धति काफी समय तक चलती रही पर आगे चलकर वह ऐसी लुप्त हुई कि आज उन साधकों के विषय में विशेष कुछ परिज्ञात नहीं है। उनकी विचारधारा, साधना तथा सिद्धांत आदि के सम्बन्ध में न कोई स्वतन्त्र साहित्य ही प्राप्त है और न कोई अन्यविध ऐतिहासिक सामग्री ही ।
धर्म, अध्यात्म, साधना एवं दर्शन के क्षेत्र में अनुसन्धान-रत मनीषी, शोधार्थी, अध्ययनार्थी इस ओर ध्यान दें, गहन अध्ययन तथा गवेषणा करें, अज्ञात एवं अप्राप्त तथ्यों को प्राकट्य देने का प्रयत्न करें, यह सर्वथा वाञ्छनीय है।
चमत्कारी अम्बड परिव्राजक
८९ – - बहुजणे णं भंते! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खड़, एवं भासइ, एवं परूवेइ— एवं खलु अंबडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, से कहमेयं भंते! एवं ?
८९ – भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं— कहते हैं, भाषित करते हैं— विशेष रूप से बोलते हैं तथा प्ररूपित करते हैं— ज्ञापित करते हैं— बतलाते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। अर्थात् एक ही समय में वह सौ घरों में आहार करता हुआ तथा सौ घरों में निवास करता हुआ देखा जाता है। भगवन् ! यह कैसे है ?
९० – गोयमा ! जं णं से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खड़ जाव ( एवं भासइ) एवं परूवे एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव (घरसए आहारमाहरेइ) घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसम अहंपि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव ( भासेमि) एवं परूवेमि, एवं खलु अम्मडे परिव्वायए जाव (कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए) वसहिं उवेइ ।
९० - बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, (बोलते हैं) प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है, यह सच है। गौतम ! मैं भी ऐसा ही कहता हूँ, (बोलता हूँ) प्ररूपित करता हूँ कि अम्बड परिव्राजक यावत् (काम्पिल्यपुर नगर में एक साथ सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में) निवास करता है।
९१ - सेकेणट्टे णं भंते ! एवं वुच्चइ अम्मडे परिव्वायए जाव' वसहि उवेइ ?
९१ - अम्बड परिव्राजक के सम्बन्ध में सौ घरों में आहार करने तथा सौ घरों में निवास करने की जो बात कही जाती है, भगवन् ! उसमें क्या रहस्य है ?
देखें सूत्र - संख्या ९०
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