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औपपातिकसूत्र
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श्रेष्ठ श्वेत कमल के समान अथवा मनुष्यों में रहते हुए कमल की तरह निर्लेप, पुरुषवर - गन्धहस्ती — उत्तम गन्धहस्ती
के
सदृश — जिस प्रकार गन्धहस्ती के पहुँचते ही सामान्य हाथी भाग जाते हैं, उसी प्रकार किसी क्षेत्र में जिनके प्रवेश करते ही दुर्भिक्ष, महामारी आदि अनिष्ट दूर हो जाते हैं, अर्थात् अतिशय तथा प्रभावपूर्ण उत्तम व्यक्तित्व के धनी, लोकोत्त—लोक के सभी प्राणियों में उत्तम, लोकनाथ — लोक के सभी भव्य प्राणियों के स्वामी — उन्हें सम्यक् दर्शन सन्मार्ग प्राप्त कराकर उनका योग-क्षेम साधने वाले, लोकहितकर — लोक का कल्याण करने वाले, लोकप्रदीपज्ञानरूपी दीपक द्वारा लोक का अज्ञान दूर करने वाले अथवा लोकप्रतीप —— लोक - प्रवाह के प्रतिकूलगामी— अध्यात्मपथ पर गतिशील, लोकप्रद्योतकर — लोक, अलोक, जीव, अजीव आदि का स्वरूप प्रकाशित करने वाले अथवा लोक में धर्म का उद्योत फैलाने वाले, अभयदायक — सभी प्राणियों के लिए अभयप्रद - संपूर्णत: अहिंसक होने के कारण किसी के लिए भय उत्पन्न नहीं करने वाले, चक्षुदायक—– आन्तरिक नेत्र या सद्ज्ञान देने वाले, मार्गदायक – सम्यक्ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप साधना पथ के उद्बोधक, शरणदायक - जिज्ञासु, मुमुक्षु जनों के लिए आश्रयभूत, जीवनदायक - आध्यात्मिक जीवन के संबल, बोधिदायक – सम्यक् बोध देने वाले, धर्मदायक—– सम्यक् चारित्ररूप धर्म के दाता, धर्मदेशक — धर्मदेशना देने वाले, धर्मनायक, धर्मसारथि — धर्मरूपी रथ के चालक, धर्मवर चातुरन्तचक्रवर्ती— चार अन्त — सीमायुक्त पृथ्वी के अधिपति के समान धार्मिक जगत् के चक्रवर्ती, दीप— दीपक सदृश समस्त वस्तुओं के प्रकाशक अथवा द्वीप — संसार - समुद्र में डूबते हुए जीवों के लिए द्वीप के समान बचाव के आधार, त्राण - कर्म - कदर्थित भव्य प्राणियों के रक्षक, शरण— आश्रय, गति एवं प्रतिष्ठा स्वरूप, प्रतिघात, बाधा या आवरण रहित उत्तम ज्ञान, दर्शन आदि के धारक, व्यावृत्तछद्मा - अज्ञान आदि आवरण रूप छद्म से अतीत-जन- राग आदि के जेता, ज्ञायक — राग आदि भावात्मक सम्बन्धों के ज्ञाता अथवा ज्ञापक — राग आदि को जीतने का पथ बताने वाले, तीर्ण संसार सागर को पार कर जाने वाले, बुद्ध — बोद्धव्य या जानने योग्य का बोध प्राप्त किए हुए, बोधक औरों के लिए बोधप्रद, सर्वज्ञ सर्वदर्शी, शिव-कल्याणमय, अचल — स्थिर, निरुपद्रव, अन्तरहित, क्षयरहित, बाधारहित, अपुनरावर्तन—– जहाँ से जन्म-मरण रूप संसार में आगमन नहीं होता, ऐसी सिद्धि-गति — सिद्धावस्था नामक स्थिति प्राप्त किये हुए — सिद्धों को नमस्कार हो ।
भगवान् महावीर को, जो सिद्धावस्था प्राप्त करने में समुद्यत हैं, हमारा नमस्कार हो ।
हमारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक अम्बड परिव्राजक को नमस्कार हो । पहले हमने अम्बड परिव्राजक के पास उनके साक्ष्य से स्थूल प्राणातिपात — स्थूल हिंसा, मृषावाद — असत्य, चोरी सब प्रकार के अब्रह्मचर्य तथा स्थूल परिग्रह का जीवन भर के लिए प्रत्याख्यान — त्याग किया था। इस समय भगवान् महावीर के साक्ष्य से हम सब प्रकार की हिंसा, सब प्रकार के असत्य, सब प्रकार की चोरी, सब प्रकार के अब्रह्मचर्य तथा सब प्रकार के परिग्रह का जीवन भर के लिए त्याग करते हैं ।
सब प्रकार के क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम— अप्रकट माया व लोभजनित प्रिय या रोचक भाव, द्वेषअव्यक्त मान व क्रोधजनित अप्रिय या अप्रीति रूप भाव, कलह —— लड़ाई-झगड़ा, अभ्याख्यान — मिथ्या दोषारोपण, पैशुन्य चुगली तथा पीठ पीछे किसी के होते —— अनहोते दोषों का प्रकटीकरण, परपरिवाद निन्दा, रति मोहनीय
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अप्राप्तस्य प्रापणं योगः जो प्राप्त नहीं है, उसका प्राप्त होना योग कहा जाता है। प्राप्तस्य रक्षणं क्षेमः - प्राप्त की रक्षा करना क्षेम है।