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________________ अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी शिष्य गंगा महानदी के दो किनारों से काम्पिल्यपुर नामक नगर से पुरिमताल नामक नगर को रवाना हुए। विवेचन— प्रस्तुत सूत्र में काम्पिल्यपुर तथा पुरिमताल नामक दो नगरों का उल्लेख हुआ है। काम्पिल्यपुर भारतवर्ष का एक प्राचीन नगर था। महाभारत आदि पर्व (१३७.७३), उद्योग पर्व (१८९.१३, १९२.१४), शान्ति पर्व (१३९. ५) में काम्पिल्य का उल्लेख आया है। आदिपर्व तथा उद्योग पर्व के अनुसार यह उस समय के दक्षिण पांचाल प्रदेश का नगर था। यह राजा द्रुपद की राजधानी था। द्रौपदी का स्वयंवर यहीं हुआ था। नायाधम्मकहाओ (१६वें अध्ययन) में भी पांचाल देश के राजा द्रुपद के यहाँ काम्पिल्यपुर में द्रौपदी के जन्म आदि का वर्णन है। भगवान् महावीर के समय काम्पिल्यपुर अत्यन्त समृद्ध नगर था। भगवान् के दश प्रमुख उपासकों में से एक कुंडकौलिक वहीं का निवासी था, जिसका उपासकदशांग सूत्र के छठे अध्ययन में वर्णन है। इस समय यह बदायूं और फर्रुखाबाद के बीच बूढ़ी गंगा के किनारे कम्पिल नाम के ग्राम के रूप में विद्यमान है। यह नगर कभी जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र था। ८३- तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए, छिण्णावायाए, दीहमद्धाए, अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वगहिए उदए अणुपुव्वेणं परिभुंजमाणे झीणे। ८३- वे परिव्राजक चलते-चलते एक ऐसे जंगल में पहुँच गये, जहाँ कोई गाँव नहीं था, न जहाँ व्यापारियों के काफिले, गोकुल-गायों के समूह, उनकी निगरानी करने वाले गोपालक आदि का ही आवागमन था, जिसके मार्ग बड़े विकट थे। वे जंगल का कुछ भाग पार कर पाये थे कि चलते समय अपने साथ लिया हुआ पानी पीते-पीते क्रमशः समाप्त हो गया। ८४-तए णं से परिव्वायगा झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा उदगदातारमपस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी ८४ - तब वे परिव्राजक, जिनके पास का पानी समाप्त हो चुका था, प्यास से व्याकुल हो गये। कोई पानी देने वाला नहीं दिखा। वे परस्पर एक दूसरे को संबोधित कर कहने लगे ८५- "एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे इमीसे अगामिआए जाव (छिण्णावायाए, दीहमद्धाए) अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से उदए जाव (अणुपुव्वेणं परिभुंजमाणे) झीणे। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अहं इमीसे अगामियाए जाव' अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए" त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढें पडिसुणेति, पडिसुणित्ता तीसे अगामियाए जाव' अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेंति, करित्ता उदगदातारमलभमाणा दोच्चंपि अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी ८५- देवानुप्रियो! हम ऐसे जंगल का, जिसमें कोई गाँव नहीं है, (जिसमें व्यापारियों के काफिले तथा १. २. देखें सूत्र यही। देखें सूत्र यही।
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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