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________________ क्लिशित- उपपात भगवन्! क्या वे देव परलोक के आराधक होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । क्लिशित - -उपपात ११७ ७०― से जे इमे गामागर - णयर - णिगम - रायहाणि - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुह-पट्टणासमसंबाहसण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा— अंडबद्धगा, णिअलबद्धगा, हडिबद्धगा, चारगबद्धगा, हत्थछिण्णगा, पायछिण्णगा, कण्णछिण्णगा, नक्कछिण्णगा, ओट्ठछिण्णगा, जिब्भछिण्णगा, सीसछिण्णगा, मुखछिण्णगा, मज्झछिण्णगा, वइकच्छछिण्णगा, हिययउप्पाडियगा, णयणुप्पाडियगा, दसणुष्पाडियगा, वसणुप्पाडियंगा, गेवच्छिण्णगा, तंडुलच्छिण्णगा, कागणिमंसक्खावियगा, ओलंबियगा, लंबियगा, घसियगा, घोलियगा, फालियगा, पीलियगा, सूलाइयगा, सूलभिण्णगा, खारवत्तिया, वज्झवत्तिया, सीहपुच्छियगा, दवग्गिदड्डगा, पंकोसण्णगा, पंके खुत्तगा, वलयमयगा, वसट्टमयगा, णियाणमयगा, अंतोसल्लमयगा, गिरिपडियगा, तरुपडियगा, मरुपडियगा, गिरिपक्खंदोलगा, तरुपक्खंदोलगा, मरुपक्खंदोलगा, जलपवेसिगा, जलणपवेसिगा, विसभक्खियगा, सत्थोवाडियगा, वेहाणसिया, गिद्धपिट्ठा, कंतारमयगा, दुब्भिक्खमयगा, असंकिलिट्ठपरिणामा ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तर्हि तेसिं ठिई, तर्हि तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बारसवाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता ! अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्डी इ वा, जुई इ वा, जसे इ वा, बले इ वा, वीरिए इ वा, पुरिसक्कारपरिक्कमे इ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा ? इट्ठे सम ७० - जो (ये) जीव ग्राम, आकर— नमक आदि के उत्पत्ति स्थान, नगर—जिनमें कर नहीं लगता हो, ऐसे शहर, खेट— धूल के परकोटों से युक्त गाँव, कर्बट —— अति साधारण कस्बे, द्रोणमुख — जल मार्ग तथा स्थल-मार्ग युक्त स्थान, मडंब आस - पास गाँव रहित बस्ती, पत्तन —— बन्दरगाह अथवा बड़े नगर, जहाँ या तो जल मार्ग से या स्थल मार्ग से जाना सम्भव हो, आश्रम — तापसों के आवास, निगम व्यापारिक नगर, संवाह - पर्वत की तलहटी में बसे गाँव, सन्निवेश -झोंपड़ियों से युक्त बस्ती अथवा सार्थवाह तथा सेना आदि के ठहरने के स्थान में मनुष्य होते हैं— मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं, जिनके किसी अपराध के कारण काठ या लोहे के बंधन से हाथ बाँध दिये जाते हैं, जो बेड़ियों से जकड़ दिये जाते हैं, जिनके पैर काठ के खोड़े में डाल दिये जाते हैं, जो कारागार में बन्द कर दिये जाते हैं, जिनके हाथ काट दिये जाते हैं, जिनके पैर काट दिये जाते हैं, कान काट दिये जाते हैं, नाक काट दिये जाते हैं, होठ काट दिये जाते हैं, जिह्वाएं काट दी जाती हैं, मस्तक छेद दिये जाते हैं, मुँह छेद दिये
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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