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औपपातिकसूत्र
तपस्या।
तत्पश्चात् भगवान् ने बतलाया—जो नरक में जाते हैं, वे वहाँ नैरयिकों जैसी वेदना पाते हैं। तिर्यंच योनि में गये हुए वहाँ होने वाले शारीरिक और मानसिक दुःख प्राप्त करते हैं। मनुष्य जीवन अनित्य है। उसमें व्याधि, वृद्धावस्था, मृत्यु और वेदना आदि प्रचुर कष्ट हैं। देवलोक में देव दैवी ऋद्धि और दैवी सुख प्राप्त करते हैं।
भगवान् ने सिद्ध, सिद्धावस्था एवं छह जीवनिकाय का विवेचन किया। जैसे—जीव बंधते हैं—कर्म-बन्ध करते हैं, मुक्त होते हैं, परिक्लेश पाते हैं। कई अप्रतिबद्ध-अनासक्त व्यक्ति दुःखों का अन्त करते हैं, पीड़ा, वेदना व आकुलतापूर्ण चित्तयुक्त जीव दुःख-सागर को प्राप्त करते हैं, वैराग्य प्राप्त जीव कर्म-दल को ध्वस्त करते हैं, रागपूर्वक किये गये कर्मों का फलविपाक पापपूर्ण होता है, कर्मों से सर्वथा रहित होकर जीव सिद्धावस्था प्राप्त करते हैं—यह सब (भगवान् ने) आख्यात किया।
५७- तमेव धम्मं दुविहं आइक्खइ। तं जहा—अगारधम्मं (च) अणगारधम्मं च। अणगारधम्मो ताक्-इह खलु सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइयस्स सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावाय-अदिण्णादाण-मेहुण-परिग्गह-राईभोयणाओ वेरमणं। अयमाउसो । अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते, एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवति। ____ अगारधम्म दुवालसविहं आइक्खाइ, तं जहा—१ पंच अणुव्वयाई, २ तिण्णि गुणव्वयाई, ३ चत्तारि सिक्खावयाई। पंच अणुव्वयाइं तं जहा–१ थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, २ थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, ३ थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, ४ सदारसंतोसे, ५ इच्छापरिमाणे। तिण्णि गुणव्वयाई, तं जहा–६ अणत्थदंडवेरमणं, ७ दिसिव्वयं, ८ उवभोगपरिभोगपरिमाणं। चत्तारि सिक्खावयाई, तं जहा–९ सामाइयं, १० देसावयासियं, ११ पोसहोववासे, १२ अतिहिसंविभागे, अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणा। अयमाउसो! अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते। एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ।
५७– आगे भगवान् ने बतलाया-धर्म दो प्रकार का है—अगार-धर्म और अनगार-धर्म। अनगार-धर्म में साधक सर्वतः सर्वात्मना सम्पूर्ण रूप में, सर्वात्मभाव से सावध कार्यों का परित्याग करता हुआ मुंडित होकर, गृहवास से अनगार दशा-मुनि-अवस्था में प्रव्रजित होता है। वह सम्पूर्णतः प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह तथा रात्रिभोजन से विरत होता है।
भगवान् ने कहा आयुष्मान् ! यह अनगारों के लिए समाचरणीय धर्म कहा गया है। इस धर्म की शिक्षाअभ्यास या आचरण में उपस्थित—प्रयत्नशील रहते हुए निर्ग्रन्थ साधु या निर्ग्रन्थी साध्वी आज्ञा (अर्हत्-देशना) के आराधक होते हैं।
भगवान् ने अगारधर्म १२ प्रकार का बतलाया—५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत तथा ४ शिक्षाव्रत। ५ अणुव्रत इस प्रकार हैं—१. स्थूल प्राणातिपात —त्रस जीव की संकल्पपूर्वक की जाने वाली हिंसा से निवृत्त होना, २. स्थूल