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रानियों का सपरिजन आगमन, वन्दन
१०५ णाणादेसीहिं विदेसपरिमंडियाहिं इंगियचिंतियपत्थियवियाणियाहिं, सदेसणेवत्थग्गहियवेसाहिं चेडियाचक्कवालवरिसधरकंचुइजमहत्तरवंद-परिक्खित्ताओ अंतेउराओ णिग्गच्छंति, णिगच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाइं, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पाडियक्कपाडियक्काइं जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई दुरूहंति, दुरूहित्ता णियगपरियालसद्धिं संपरिवुडाओ चंपाए णयरीए मझमझेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छत्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेएइ, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थयराइसेसे पासंति, पासित्ता पाडियक्कपाडियक्काइं जाणाई ठवेंति, ठवित्ता जाणेहिंतो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता बहूहिं खुजाहिं जाव परिक्खित्ताओ जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छन्ति, तं जहा–१ सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए, २ अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए, ३ विणओ णयाए गायलट्ठीए, ४ चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं, ५ मणसो एगत्तीभावकरणेणं समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता, णमंसित्ता कूणियरायं पुरओकटु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिउडाओ पज्जुवासंति।
. ५५– तत्पश्चात् सुभद्रा आदि रानियों ने अन्तःपुर में स्नान किया, नित्य-नैमित्तिक कार्य किये। कौतुक देहसज्जा की दृष्टि से आँखों में काजल आंजा, ललाट पर तिलक लगाया, प्रायश्चित्त दुःस्वप्नादि दोष-निवारण हेतु चन्दन, कुंकुम, दधि, अक्षत आदि से मंगल-विधान किया। वे सभी अलंकारों से विभूषित हुईं।
फिर बहुत सी देश-विदेश की दासियों, जिनमें से अनेक कुबड़ी थीं, अनेक किरात देश की थीं, अनेक बौनी थीं, अनेक ऐसी थीं, जिनकी कमर झुकी थीं, अनेक बर्बर देश की, बकुश देश की, यूनान देश की, पह्नव देश की, इसिन देश की, चारुकिनिक देश की, लासक देश की, लकुश देश की, सिंहल देश की, द्रविड़ देश की, अरब देश की, पुलिन्द देश की, पक्कण देश की, बहल देश की, मुरुंड देश की, शबर देश की, पारस देश की—यों विभिन्न देशों की थीं जो स्वदेशी अपने-अपने देश की वेशभूषा से सज्जित थीं, जो चिन्तित और अभिलषित भाव को संकेत या चेष्टा मात्र से समझ लेने में विज्ञ थीं, अपने अपने देश के रीति-रिवाज के अनुरूप जिन्होंने वस्त्र आदि धारण कर रखे थे, ऐसी दासियों के समूह से घिरी हुई, वर्षधरों—नपुंसकों, कंचुकियों—अन्तःपुर (जनानी ड्योढ़ी) के पहरेदारों तथा अन्तःपुर के प्रामाणिक रक्षाधिकारियों से घिरी हुईं बाहर निकलीं। ___अन्तःपुर से निकल कर सुभद्रा आदि रानियाँ, जहाँ उनके लिए अलग-अलग रथ खड़े थे, वहाँ आई। वहाँ आकर अपने लिए अलग-अलग अवस्थित यात्राभिमुखगमनोद्यत, जुते हुए रथों पर सवार हुईं। सवार होकर अपने परिजन वर्ग-दासियों आदि से घिरी हुई चम्पा नगरी के बीच से निकलीं। निकलकर जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ आईं। आकर श्रमण भगवान् महावीर के न अधिक दूर, न अधिक निकट समुचित स्थान पर ठहरीं । तीर्थंकरों के छत्र आदि अतिशयों को देखा। देखकर अपने रथों को रुकवाया। रुकवाकर वे रथों से नीचे उतरीं । नीचे उतरकर अपनी बहुत-सी कुब्जा आदि पूर्वोक्त दासियों से घिरी हुई बाहर निकलीं। जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ आईं। आकर भगवान् के निकट जाने हेतु पाँच प्रकार के अभिगमन नियम जैसे सचित्त सजीव पदार्थों का व्युत्सर्जन करना, अचित्त-अजीव पदार्थों का अव्युत्सर्जन, गात्रयष्टि-देह को विनय से नम्र करना झुकाना, भगवान् पर दृष्टि पड़ते ही हाथ जोड़ना तथा मन को एकाग्र करना—धारण किये। फिर उन्होंने तीन बार भगवान् को