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________________ शेष भवनवासी देवों का आगमन घुटनों तक लटकती थीं। उन्होंने दिव्य-देवोचित वर्ण, गन्ध, रूप, स्पर्श, संघात–दैहिक गठन, संस्थान दैहिक आकृति, ऋद्धि-विमान, वस्त्र, आभूषण आदि दैविक समृद्धि, द्युति—आभा अथवा युक्ति–इष्ट परिवारादि योग, प्रभा, कान्ति, अर्चि-दीप्ति, तेज, लेश्या आत्मपरिणत—तदनुरूप भामण्डल से दशों दिशाओं को उद्योतितप्रकाशयुक्त, प्रभासित-प्रभा या शोभायुक्त करते हुए, श्रमण भगवान् महावीर के समीप आ-आकर अनुरागपूर्वकभक्ति सहित तीन-तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, वन्दन-नमस्कार किया। (वैसा कर अपने-अपने नामों में गोत्रों का उच्चारण करते हए) वे भगवान महावीर केन अधिक समीप.न अधिक दर, शश्रषासनने की इच्छा रखते हुए, प्रणाम करते हुए, विनयपूर्वक सामने हाथ जोड़ते हुए उनकी पर्युपासना करने लगे। विवेचन- भवनपति देवों के अन्तर्गत स्तनितकुमार देवों के मुकुटस्थ चिह्न के लिए प्रस्तुत सूत्र में वद्धमाण वर्द्धमान या वर्द्धमानक शब्द का प्रयोग हुआ है। वर्द्धमान (वर्धमान) शब्द के अनेक अर्थ हैं। शब्द कोशों में इसके शराव तश्तरी, पात्र-विशेष, कर-संपुट, स्कन्धारोपित पुरुष, स्वस्तिक आदि अनेक अर्थों का उल्लेख हुआ है। आगम-साहित्य में भगवान् महावीर के लिए स्थान-स्थान पर यह शब्द प्रयुक्त है ही। पउमचरियं में राजा श्री रामचन्द्र के प्रेक्षागृह के लिए इस शब्द का प्रयोग हुआ है। प्रवचनसारोद्धार में एक शाश्वती जिन-प्रतिमा के लिए यह शब्द आया है। प्रस्तुत सूत्र में आये इस शब्द के भिन्न-भिन्न व्याख्याकारों ने भिन्न-भिन्न अर्थ किये हैं। आचार्य अभयदेवसूरि ने (११वीं ई. शती) इस शब्द का शराव अथवा पुरुषारूढ पुरुष अर्थ किया है। अन्य व्याख्याकारों ने शराव, संपुट, स्वस्तिक आदि भिन्न-भिन्न अर्थ किये हैं। आचार्य अभयदेवसूरि ने शराव के साथ पुरुषारूढ पुरुष स्कन्धारोपित पुरुष—ऐसा जो अर्थ किया है, उससे प्रतीत होता है कि इस शब्द का लोक-प्रचलित अर्थ तो सामान्यतया शराव था पर आगम-साहित्य में 'स्कन्धारोपित पुरुष' के अर्थ में ही व्यवहृत था। पाइअ-सद्द-महण्णवो में जहाँ इसके 'स्कन्धारोपित पुरुष' अर्थ का उल्लेख हुआ है, वहाँ प्रस्तुत सूत्र (औपपातिक) की ही साख दी गई है। यों अर्थ सम्बन्धी ऐतिहासिक प्राचीनता की दृष्टि से 'वर्द्धमानक' का अर्थ 'स्कन्धारोपित पुरुष' ही संगत प्रतीत होता है। १. २. संस्कृत-हिन्दीकोश : वामन शिवराम आप्टे-पृष्ठ ९०३ पउमचरियं ८०.५ प्रवचनसारोद्धार ५९ औपपातिकसूत्र वृत्ति पत्र १५१ (क) उववाइय सुत्त पृष्ठ १६७ (ख) पन्नवणा सूत्र पद २.२, पृष्ठ १५० (ग) उववाई सूत्र पृष्ठ ८१ (घ) औपपातिकसूत्रम् पृष्ठ ३३३
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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